Thursday 15 March 2018

उस पर श्रद्धा करो



यं स्मा पृच्छन्ति कुह सेति घोरमुतेमाहुर्नैषो अस्तीत्येनम्।
सो अर्यः पुष्टीर्विजइवा मिनाति श्रदस्मै धत्त स जनास इन्द्रः।। -). 2125 अथर्व. 20345
ऋषि:-गृत्समदः।। देवता-इन्द्रः।। छन्दः-त्रिष्टुप्।।

विनय-मनुष्य जब गम्भीरतापूर्वक उस परमेश्वर की सत्ता पर विचार करने लगते हैं तो उनमें से कोई पूछते हैं वह ईश्वर कहाँ हैजिसने इस बड़े भोगदायक संसार में दुःख, दर्द, मृत्यु आदि पैदा करके लोगों का रस कर रखा है, जो बड़े-बड़े दुष्टों का दलन करनेवाला तथा अपने वज्र से पापों का संहार करनेवाला कहा जाता है, उस घोर भयप्रर ईश्वर के विषय में वे पूछते हैं कि वह कहाँ है?’ ‘हमें बताओ वह कहाँ है?’ दूसरे कुछ भाई निश्चय ही कर लेते हैं कि ईश्वर-वीश्वर कोई नहीं है।’ ‘बीसवीं शताब्दी में ईश्वर तो अब मर गया है’-‘ईश्वर केवल अज्ञानियों के लिए है’, परन्तु हे मनुष्यो! तनिक सावधानी से देखो! सत्य को खोजो और इसे धारण करो। देखो! वे पुरुष जो अपनी समझ में प्रकृतिमय ईश्वरविहीन संसार में रहते हैं, अतः जो इस जगत् में जिस किसी प्रकार सुखभोग करना ही अपना ध्येय समझते हैं और स्वभावतः विपरीतगामी होकर धर्म, दया आदि के सत्यमार्ग को तिरस्कृत कर निरन्तर अपनी पुष्टि की ही धुन में लगे रहते हैं अर्थात् धनसंग्रह, स्त्री, पुत्र, प्रतिष्ठा, प्रभाव आदि से अपने को समृ( और पुष्ट करते जाते हैं, उन अरिनामक स्वार्थी लोगों के सामने भी एक समय आता है जबकि उनका यह सांसारिक भोग का खड़ा किया हुआ सब महल एकदम न जाने कैसे गिर पड़ता है। उनके जीवन में एक भूकम्प-सा आता है, उन्हें एक प्रबल धक्का लगता है। उनकी वह सब भौतिकतुष्टि क्षण में मिट्टी हो जाती है, सब ठाठ गिर पड़ता है। उस समय बहुत बार उनका अभिमान नष्ट होता है और वे नम्र होते हैं। कल्याणकारी है वह धक्का, कल्याणकारी है उनका वह सर्वनाश, यदि वह उन्हें नम्र बनाता है और धन्य हैं वे पुरुष जिन्हें यह कल्याणकारी धक्का लगता है, क्योंकि वहीं पर प्रभु के दर्शन हो जाया करते हैं। हे मनुष्यों! वह ईश्वर ऑख से दीखने की वस्तु नहीं है, उसे तो श्र(ा की ऑंख से देखो। जो मनुष्य की बड़ी-बड़ी योजनाओं को पलक झपकने में बदल देता है, कुछ-का-कुछ कर देता हैऋ जिसके आगे अल्पज्ञ मनुष्य का कुछ बस नहीं चलता, तनिक उसे देखो, नम्र होकर उसे देखोऋ वही परमेश्वर है।
शब्दार्थ-यम्=जिस घोरम्=अद्भूत, भयप्रर वस्तु के विषय में पृच्छन्ति स्म=लोग प्रश्न किया करते हैं कि कुहः सः इति =‘‘वह कहाँ है’’ उत ईं एनम्=और जिस इसके विषय में आहुः=बहुत-से कहा करते हैं कि न एषः अस्ति इति=वह है ही नहीं’’ सः=वही अर्यः=अरि के, विपरीतगामी स्वार्थी पुरुष के पुष्टीः=सब सांसारिक समृ(, पुष्टि को विजः इव=भूकम्प की भाँति आमिनाति=विनष्ट कर देता है। जनासः=हे मनुष्यो! अस्मै श्रत् धत्त=इस परमेश्वर पर श्र(ा करो सः इन्द्रः=वही परमैश्वर्यवान् परमेश्वर है।
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