Wednesday 15 February 2017

हमारे सैनिक सब से श्रेष्ठ हों


विश्व  में वही विजयी होते हैं ,जिनके पास अपार मनोबल हो ,जिससे वह असाध्य कार्य को भी बड़ी सरलता से कर सकें. विशव में वही सेनायें विजयी होती हैं , जिनके पासा अत्याधुनिक शस्त्र हों तथा विश्व में वही लोगविजयी होते हैं , वही देश विजयी होते हैं, वही सेनायें विजयी होती हैं, जिनके पास देवीय कृपा हो , देवताओं का आशीर्वाद हो . जिन देशों, जिन सेनाओं का मनोबल गिरा हुआ है , मायूस से हैं , उनको कभी विजय नहीं मिल सकती , जिस देश की सेनाओं के पास अत्याधुनिक तकनीक के शास्त्र नहीं हैं ,वह सेनायें भी युद्ध क्षेत्र में सदा भयभीत सी रहती हैं , उनका मनोबल गिरा सा होता है, इस कारण ऐसी सेनायें तो निराश सी, हताश सी हो कर युद्ध क्षेत्र में उतरती हैं , ऐसी सेनायें विजेता नहीं हो सकतीं तथा कर्म हीन सेनाओं के साथ देवता भी नहीं होते, इस कारण उन्हें देवताओं का आशीर्वाद भी नहीं होता, अत: वह भी विजयी नहीं होती. वेदों में ऐसे अनेक मन्त्र दिए हैं , जो हमें विजयी होने के साधन बताते हैं द्य जिन मन्त्रों के बताये मार्ग पर चलने से विजय निश्चित होती है . इस लिए विजयी होने के इच्छुक सैनिकों को वेद का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए तथा वेद में बताये विजय के उपायों को अवश्य ही अपनाना चाहिए. ऋग्वेद मन्त्र संख्या १०.१०३.११, अथर्व वेद मन्त्र संख्या १९.१३.११ यजुर्वेद मन्त्र संख्या १७.३ में विजय प्राप्त करने के बड़े सुन्दर साधन बताये गए हैं. मन्त्र इस प्रकार है -
अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्तु -
अस्मां उ देवा अवता हवेषु अस्माकं इंद्रय सम्रितेशु ध्वजेशु -
अस्माकं या इश्वस्ता द्य जयन्तु || ऋग.१०.१०३.११,अथर्व.१९.१३.११ ,यजु. १७.४३ ||
शब्दार्थ
(द्वजेषु) शत्रु सेनाओं के ध्वजों के (सम्रितेशु) एकत्र होने पर (इंद ) परमात्मा (अस्माकं रक्षिता भवतु) हमारा रक्षक हो (अस्माकं ) हमारे (या) जो (इशवा) बाण हैं ( तारू) वे (जयन्तु) विजयी हों (अस्माकं) हमारे (वीरा) वीर (उत्तरे) विजयी (भवन्तु) हों (उ) और (हे देवारू) हे देवो ! (हवेषु) आह्वान पर अथवा संग्रामों मैं (आस्मां) हमे (आवतरू) रक्षा करो.
भावार्थ .
शत्रु सेनाओं के ध्वजों के उद्यत होने पर परमात्मा हमारा रक्षक हो द्य हमारे बाण विजयी हों. हमारी सेनायें (वीर) सर्वश्रेष्ठ सिद्ध हों . हे देवो ! हमारी पुकार पर तुम युद्धों में हमारी रक्षा करो .
इस मन्त्र में युद्ध सम्बन्धी तीन बातों की और ध्यान आकृष्ट किया गया है . ये तीन वातें हैं रू-
(१)हमारी सेना के बाण ( शस्त्र ) शक्तिशाली, आधुनिक प्राद्योगिकी से भरपूर तथा विजेता हों -
मन्त्र हमारा मार्ग दर्शन करते हुए बताता है कि हमारी सेनायें उच्चकोटि के शस्त्रों से सुसज्जित हो. आज शस्त्र प्रणाली विश्व में अति उत्तम, अति विकसित हो गयी है द्य वह समय गया, जब हम तीर, तलवार, गदा, लाठी, भाले या मुक्कों से युद्ध करते थे द्य युद्ध करते करते महीनों ही नहीं वर्षों बिताने पर भी कोई परिणाम सामने नहीं आता था. आज विज्ञान ने प्रत्येक क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है. यही कारण है कि विश्व में अत्याधूनिक तकनीक के स्वामी अमरीका जैसे देश नहीं चाहते कि विश्व का कोई देश उनके समकक्ष बनकर उसे चुनौती दे , इसलिए उन्होंने युद्ध सामग्री की नवीनतम तकनीक पर एकाधिकार स्थापित रखने के लिए एक संगठन बना रखा है तथा एसा प्रयास करते रहते हैं कि कोई भी देश इस प्रकार के कार्य को अपने हाथ में न ले, यदि कोई इस पर कार्य करता है तो उसे परेशान करते हैं, ताकि वह इस कार्य से अपना हाथ हटा ले. इस बात को ही इस मन्त्र ने स्पष्ट किया है कि हमारी सेनाओं के पास उच्च तकनीक के नवीनतम शस्त्र हों. जिस सेना के पास जितने उच्च तकनीक के अत्याधुनिक शस्त्र होंगे ,वह उतनी ही सरलता से शत्रु को विजय करने का सामर्थ्य रखती है. अत: उच्च तकनीक से युक्त शस्त्रों से सुसज्जित सेनायें शत्रु पर शीघ्र ही विजयी होंगी. इस के लिए न केवल उच्चकोटि के शस्त्र ही चाहियें अपितु उन शस्त्रों को प्रयोग करने की तकनीक का भी महीन ज्ञान हमारे सैनिकों को होना आवश्यक है द्य अन्यथा उत्तम शस्त्र होने के पश्चात भी विजय हाथ नहीं लगेगी. कोई व्यक्ति हाथ में बन्दूक लिए है किन्तु उसे चलाना नहीं जानता तो वह उस बन्दुक का क्या करेगा ? जब कोई गुंडा उसे परेशान करेगा तो वह कैसे उसका प्रतिशोध लेगा. हो सकता है कि सामने का निहत्था व्यक्ति उसकी ही बन्दुक छीन कर उस पर उसी से ही गोली दाग दे. इससे स्पष्ट होता है कि विजय पाने के लिए अच्छे शस्त्रों के साथ ही साथ उनके प्रयोक्ता भी अच्छे ही होने चाहियें. विजय इन दोनों बातों पर ही निर्भर कराती है.
(२)युद्ध में हमारे वीर ( सैनिक सर्वश्रेष्ठ सिद्ध हों -
जिस देश के पास सैनिक सर्वोत्तम हैं , युद्ध भूमि में विजय उस देश को ही मिलती है. इन पंक्तियों से वेद मन्त्र ने हमारे वीर सैनिकों के लिए यह शिक्षा दी है कि वह युद्धभूमि में सर्वश्रेष्ठ हों द्य अब हम विचार करते हैं कि सर्वश्रेष्ठ कौन हो सकता .सेना में वह सेना ही सर्वश्रेष्ठ होती है , जिस की सैन्य शिक्षा अति उत्तम हो. अनुशासन भी सेना कीविजय का मुख्य आधार है . अनुशासन ही सेना की योग्यता का आधार है. यही सैनिक की योग्यता की कसौटी है. विश्व इस बात का साक्षी है कि जिस सेना में अनुशासन है वह सेना ही विजयी होती है द्य यदि सेना में अनुशासन नहीं है, अपने नेता का अनुगमन नहीं करती, सब सैनिक अपना अपना राग अलाप रहे हैं तो शत्रु के लिए विजय का मार्ग स्वयमेव ही प्रशस्त हो जाता है. अत: अनुशासन रहित सेना उत्तम शास्त्र रखते हुए भी विजय नहीं प्राप्त कर सकती. अत: विजय की कामना की पूर्ति के लिए सेना की सर्वश्रेष्ठता के लिए उस का उत्तम प्रशिक्षण तथा उसका अनुशासन बद्ध होना भी आवश्यक है.
(३)हमारे ऊपर देवों की ( प्रभु की) कृपा हो!
परमपिता परमात्मा सदा उसके ही साथ रहता है , जो सत्य व न्याय के लिए कार्य करता है. जब एक सैनिक निष्पक्ष हो कर सत्य व न्याय का ध्यान रखते हुए युद्ध क्षेत्र में उतरता है तो परमपिता परमात्मा उसकेकरी में उसका सहायक होता है . उसके कार्य को सम्पन्न करने में उसका सहयोगी होता है. अन्यायी व असत्य पथ पर चलने वाले की परमात्मा भी कभी सहायक नहीं होता. तभी तो योगिराज क्रिशन ने कहा था की जहाँ धर्म है, में उसका ही साथ दूंगा क्योंकि जिधर धर्म होता है, विजय उधर ही होती है . इस तथ्य का आधार भी यह वेद मन्त्र ही है .अत: विजय के अभिलाषी सैनिक के लिए यह भी आवश्यक है की वह न्याय का साथ कभी न छोड़े तथा धर्म का आचरण करे द्य एसा करने पर वह निश्चय ही अपने आश्रयदाता को विजय दिलवाने में सफल होगा. विदुरनीति में भी इस तथ्य पर ही प्रकाश किया है .विदुर जी लिखते हैं कि.-
यतो धर्मस्ततो जय विदुरनीति ७.९
अर्थात जहाँ धर्म है , वहां विजय है. अत: विजय के अभिलाषी सैनिक के लिए यह आवश्यक है कि उसके पास अत्याधुनिक सहस्त्र हों, इन शास्त्रों का पोअर्चालन भी वह ठीक से जानता हो द्य उसकी सैन्य शिक्षा भी उत्त्तम हो तथा अनुसासन में रहे . सदा सत्य व न्याय का पक्ष ले तो इसी सेना विश्व कि महानतम सेना होगी तथा इसी सेना ही विजय श्री का आलिंगन करेगी. अत: एसा गुण सेना को धारण करना चाहिए .
डॉ. अशोक आर्य

Sunday 12 February 2017

महर्षि दयानन्द जी धार्मिक व सामाजिक क्रांति के पुरोधा

        19वीं सदी जब सारा भारत अंग्रेजों की दासता को अपना भाग्य समझकर सोया था। देशवासी अपनी गुलामी की जंजीरों को तोड़ने की बजाय उल्टा उनका श्रृंगार कर रहे थे। राजनैतिक और मानसिक दासता इस तरह लोगों के दिमाग में घर कर गयी थी कि आजादी की बात करना भी लोगों को एक स्वप्न सा लगने लगा था। देश और समाज को सती प्रथा, जाति प्रथा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, मूर्तिपूजा, छुआछूत एवं बहुदेववाद आदि बुराइयों ने दूषित कर रखा था, विभिन्न आडम्बरों के कारण धर्म संकीर्ण होता जा रहा था। ईसाइयत और इस्लाम अपने चरम पर था। हालाँकि भारत से मुगल शासन राजनैतिक स्तर पर खत्म हो गया था पर सामाजिक स्तर पर पूरी तरह हावी था। लोग वैदिक हिन्दू धर्म के प्रति उदासीन होते जा रहे थे। अपनी संस्कृति के प्रति कोई रुचि लोगों के अन्दर न रही थी। देश पर अंग्रेज तो धर्म पर पाखंड हावी था और सर्व समाज विसंगतियों के जाल में कैद था।

लेकिन उसी दौरान गुजरात के टंकारा नामक स्थान पर एक बालक का जन्म (फाल्गुन)  फरवरी माह सन् 1824 में हुआ था जिसका नाम मूलशंकर रखा गया। तत्पश्चात् समस्त विश्व में इन्हें स्वामी दयानन्द के नाम से जाना गया। जिसने इस समाज को जीना सिखाया, उस समाज को जो चुनौतियों के सामने समर्पण किये बैठा था और धार्मिक और राजनैतिक दासता स्वीकार किये बैठा था। छोटी-बड़ी जाति का भेद जोकि सैकड़ों साल की गुलामी का कारण थी। उसे लोग सीने से चिपकाये बैठे थे। उस समय दया के धनी देव दयानन्द जी महाराज ने जनसमूह को सच्चाई से अवगत कराया कि छुआछूत की भावना या व्यवहार एक अपराध है जोकि वेदों के सिद्धांत के विपरीत है। धर्म और जाति पर आधारित बहुत-सी बुराइयों तथा अंधविश्वास पर चोट करते हुए  स्वामी जी ने कुप्रथाओं, विसंगतियों के रखवाले  पाखंडियों को ललकारा। उन्हें बताया कि जो अपने कार्य व व्यवहार से ब्राह्मण तुल्य व्यवहार करता है वही श्रेष्ठ है न कि कोई जन्म जाति के आधार पर।

     प्रार्थना के साथ-साथ प्रयास करना भी जरूरी है यह सिखाया। स्वामी जी की इस ललकार से समाज की चेतना हिली। स्वामी जी ने धार्मिक सुधार के साथ राजनैतिक सुधार की बात कर अंग्रेजों के सिंहासन तक को हिला डाला। जब अंग्रेज महारानी भारतियों को यह कहकर दासता का घूंट पिला रही थी कि हम भारतीयों का अपने बच्चों की तरह ख्याल रखेंगे तब स्वामी जी ने कहा था राजा स्वदेश की मिट्टी से पैदा होना चाहिए जिनकी जड़ें अपनी देश की मिट्टी में हां जो विदेश से आयातित न हो जिनकी आस्था अपनी धर्म संस्कृति, सभ्यताओं, परम्पराओं में हो। बाद में स्वामी जी के इन्हीं वाक्यों ने अंग्रेजी सत्ता की नींव हिला दी थी। स्वामी दयानंद सरस्वती जी सर्वदा सत्य के लिए जूझते रहे, सत्याग्रह करते रहे। उन्होंने अपने उद्देश्य-प्राप्ति के लिए कभी हेय और अवांछनीय साधन नहीं अपनाए। स्वामीजी ने आने वाली पीढ़ी के सोचने के लिए देश, जाति और समाज के सुधार, उत्थान और संगठन के लिए आवश्यक एक भी बात या पक्ष अछूता नहीं छोड़ा।


         इसी समय देश में पुनर्जागरण हुआ। देश ने अंगड़ाई ली जो सैंकड़ों सालों से युवा जात-पात के लिए आपस में लड़ रहे थे। उन्हें समझाया कब तक दूसरों के लिए लड़ोगे! कभी इस राजा के लिए कभी उस राजा के लिए, कभी अपनी जाति के लिए तो कभी आडम्बरां की रक्षा के लिए? उठो जागो! अब राष्ट्र की एकता धर्म के सिद्धांत के लिए, राष्ट्र निर्माण के लिए सीना तानकर खड़े हो जाओ। इस कारण आधुनिक भारत के निर्माण को प्रोत्साहन मिला। अँग्रेजी सरकार स्वामी दयानंद से बुरी तरह तिलमिला गयी। स्वामीजी से छुटकारा पाने के लिए, उन्हें समाप्त करने के लिए तरह-तरह के षड्यंत्र रचे जाने लगे जिसमें पाखंडियों का सहयोग भी नहीं नकारा जा सकता जो इस भारत को धर्म के नाम पर लूट रहे थे। धर्म सुधार हेतु अग्रणी रहे दयानंद सरस्वती ने अप्रैल1875 में मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की।  वेदों का प्रचार करने के लिए उन्होंने पूरे देश का  दौरा करके पंडित और विद्वानों को वेदों की महत्ता के बारे में समझाया। 

       स्वामी जी ने धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों को पुनः हिन्दू बनने की प्रेरणा देकर शुद्धि आंदोलन चलाया। पुनः वैदिक कॉलेजों की स्थापना होने लगी। हिन्दू समाज को इससे नई चेतना मिली और अनेक संस्कारगत कुरीतियों से छुटकारा मिलना आरम्भ हो गया। स्वामी जी ने एकेश्वरवाद का रास्ता दिखाया। उन्होंने जातिवाद और बाल-विवाह का विरोध किया और नारी शिक्षा तथा विधवा विवाह को प्रोत्साहित किया। उनका कहना था कि किसी भी अहिन्दू को हिन्दू धर्म में लिया जा सकता है जिस कारण उस समय हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन रुक गया। उन्होंने इस सर्व समाज को सत्यार्थ प्रकाश जैसा सही रास्ता दिखाने वाला ग्रन्थ दिया। अपनी युवावस्था, अपना जीवन, अपना सर्वस्व इस देश और समाज को दिया। क्या स्वामी जी का यह बलिदान कोई भूल सकता है। वे प्रत्येक की पूर्ति के लिए मनसा, वाचा, कर्मणा मरण-पर्यन्त प्रयत्नशील रहे उन्होंने अपने उपदेशों, लेखों द्वारा और लोगों के सम्मुख अपना पावन आदर्श तथा श्रेष्ठ चरित्र उपस्थित करके देश में जागृति उत्पन्न कर दी जिससे भावी राजनैतिक नेताओं का कार्य बहुत ही सुगम व सरल हो गया।निःसंदेह स्वामी दयानंद सरस्वती राष्ट्र-निर्माता थे। महर्षि देव दयानन्द जी के जन्मोत्सव पर उन्हें शत्-शत् नमन।
-राजीव चौधरी


Saturday 4 February 2017

आतंकवाद से ऐसे होगी मुक्ति

अतीत का एक हल्का सा झरोखा, एक क्षण को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे हम अपने देश के किसी गाँव में हो अपनी सांस्कृतिक पोशाके पहने घूमते बच्चे, किसी महिला के हाथ में हाथ की आटा चक्की तो कोई पुरुष हाथ की चारा काटने की मशीन पर खड़ा है, यह नजारा हिन्दू आध्यात्मिक सेवा मेला गुरुग्राम हरियाणा में देखने को मिला. जिसमे करीब उत्तर भारत के 400 हिन्दू संगठनों ने भाग लिया. आर्य समाज की इस मेले में विशेष उपस्थिति थी. दो फरवरी से पांच फरवरी तक चलने वाले इस मेले में देश की सांस्कृतिक और आध्यत्मिक छठा देखते ही बन रही थी. दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा के तत्वावधान में आर्य समाज के वैदिक साहित्य के स्टाल हर किसी को अपनी और आकर्षित कर रहा था. अखंड भारत की कल्पना के साथ भारतीय संस्कृति, सभ्यता, इतिहास और सेवा कार्यों की झलक दुनिया के सामने प्रस्तुत करने के लिए हरियाणा में पहली बार मेले का आयोजन किया गया

हरियाणा के गुरुग्राम स्थित सेक्टर -29 लेजर वैली मैदान में पहली बार आयोजित हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा मेले के उदघाटन आचार्य देवव्रत जी महामहिम राज्यपाल हिमाचल प्रदेश ने किया उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा कि भारतीय हिन्दू अध्यात्मवाद वैदिक संस्कृति पर आधारित है. वेदों में अध्यात्म व भोगवाद पर गंभीर चिंतन किया गया है. यजुर्वेद के 40 वें अध्याय का पहला श्लोक हमें यह बताता है कि संसार के कण-कण में भगवान विद्यमान हैं. वैदिक संस्कृति पर आधारित हमारी भारतीय संस्कृति भोगवाद का विरोध नहीं करती लेकिन मनुष्य को सीख देती है कि उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का त्याग पूर्वक भोग करो. इसलिए हमें संसार में उपलब्ध सभी प्राकृतिक संसाधनों का भोग यह समझ कर करना चाहिए की ये दुनिया किसी और यानी ईश्वर की है. इसका नाजायज दोहन नहीं किया जाना चाहिए. अगर इस चिंतन को दुनिया आत्मसात कर ले तो आतंकवाद जैसी समस्या के लिए दुनिया में कोई जगह नहीं रहेगी. मेले के उद्घाटन के पश्चात महामहिम राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी ने आर्य समाज दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा और विचार टीवी के संयुक्त स्टाल 197-198 पर पधारकर उद्घाटन किया. दिल्ली सभा की और से ओ३म शब्द की प्रतीकत्मक तस्वीर भेंट की गयी. जेबीएम ग्रुप के चेयरमैन एस के आर्य जी ने स्टॉल पर दीप प्रज्वलित किया.

उन्होंने अपने सम्बोधन में इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की कि आज का चिंतन पश्चिम से प्रभावित है जो ईट ड्रिंक एंड बी मैरी के क्षणिक सिद्धांत पर आधारित है. इसका श्रोत यूरोप रहा है जहाँ केवल वर्तमान जन्म की चिंता की जाती है अगले जन्म की परिकल्पना बिल्कुल नहीं. इसके कारण दुनिया आज समस्याओं से घिरी है क्योंकि यूरोपीय सोच में सहअस्तित्व के लिए कोई जगह नहीं है. उन्होंने याद दिलाया कि हमारे वेदों में स्वयं भगवान ने कहा है कि यह दुनिया, पहाड़, नदी, नाले, जीव-जन्तु मैंने दिए हैं। इसे अपना समझ कर भोग मत करो। उन्होंने कहा कि भगवान ने प्रकृति में हर चीज किसी उद्देश्य दे दिए हैं. राज्यपाल ने अध्यात्म के दो शब्द अस्तेय व अपरिग्रह की व्याख्या कर यूरोप व भारतीय चिंतन को परिभाषित किया.
भारतीय चिंतन कहता है कि यह विश्व आपका नहीं है क्योंकि जब आपका जन्म हुआ तब आप दुनिया ले कर नहीं आये थे और जब मृत्यु होगी तब भी आप दुनिया को साथ लेकर नहीं जायेंगे. उनके शब्दों में इसका मतलब साफ है कि यह सृष्टि परमात्मा की बनाई हुई ही नहीं बल्कि हर वास्तु में परमत्मा व्याप्त हैं. इसलिए ही वेदों में भगवान ने कहा है कि यदि तू मुझे प्राप्त करना चाहता है तो मेरे बनाये सभी प्राणियों से तू प्रेम कर और सबका खयाल रख यहं तक कि तू सबमें मुझे ही देख, मेरा ही दर्शन कर. आचार्य देवव्रत ने इस बात पर बल दिया कि भारतीय चिंतन को यदि विश्व में सभी मानने लग जाएं तो दुनिया में आतंकवाद के लिए कोई जगह नहीं रहेगी क्योंकि भारतीय चिंतन वाला व्यक्ति प्राणी मात्र में अपनी आत्मा व परमात्मा को देखता है.



इस अवसर पर अपने स्वागत भाषण में जेबीएम ग्रुप के चेयरमैन एस के आर्य ने कहा कि इस मेले का आयोजन 6 बिंदुओं-वन एवं वन्य प्राणियों, पर्यावरण, मानवीय मूल्यों, नारी सम्मान, देशप्रेम तथा सांस्कृतिक सुरक्षा को लेकर किया जा रहा है. इन 6 बिंदुओं के माध्यम  से हमारी समृद्ध संस्कृति को लोगों विशेषकर युवा पीढ़ी तक पहुंचाना है. इस मेले में सैनिक सम्मान के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित गये, जिसमें देश की सेवा करते हुए परमवीर चक्र पाने वाले जवानों को सम्मानित किया गया. परमवीर वंदन नाम से आयोजित इस कार्यक्रम में रिटायर जनरल जी. डी. बक्सी समेत सैकड़ों पूर्व सैनिक हिस्सा लिया. इस मेले में 51 हजार विद्यार्थियो  ने एक साथ वंदे मातरम गीत गाकर आकाश को गुंजायमान किया. ....
राजीव चौधरी