Thursday 28 July 2016

मूर्तिपूजा पर निष्पक्ष विचार

मेरे अनेक मूर्तिपूजक मित्र है। सभी जानते है कि मैं मूर्तिपूजा नहीं करता क्यूंकि ईश्वरीय ज्ञान वेद में मूर्तिपूजा को अमान्य कहा है। कारण ईश्वर निराकार और सर्वव्यापक है। इसलिए सृष्टि के कण कण में व्याप्त ईश्वर को केवल एक मूर्ति में सीमित करना ईश्वर के गुण, कर्म और स्वाभाव के विपरीत है। ईश्वर हमारे ह्रदय में स्थित आत्मा में वास करते है। इसलिए ईश्वर कि स्तुति, प्रार्थना एवं उपासना के लिए मूर्ति अथवा मंदिर कि कोई आवश्यकता नहीं है। इसलिए अपने भीतर ही ईश्वर को खोजना चाहिए।
आज एक मित्र ने मुझसे मूर्तिपूजा को लेकर शंका पूछी। उन्होंने कहा मूर्तिपूजा अध्यात्म जगत में प्रथम सीढ़ी है। जो अल्पमति लोग है उनके लिए मूर्तिपूजा का प्रावधान किया गया था। मैंने उत्तर दिया फिर तो पहली सीढ़ी चढ़ने के पश्चात अगली सीढ़ी चढ़कर निराकार ईश्वर कि स्तुति-प्रार्थना एवं उपासना तक अनेक लोगों को पहुँचना चाहिए। मगर हम किसी भी मूर्तिपूजक की ऐसी प्रगति नहीं देख पाते।
उल्टा हम उनकी अवनति देखते है। उदहारण के लिए वैदिक काल में केवल निराकार ईश्वर कि उपासना का प्रावधान था। मध्यकाल में बुद्ध और जैन मत वालों ने बुत पूजा आरम्भ करी। उन्हें देखकर श्री राम जी और श्री कृष्ण जी की मूर्तियां बनाई जाने लगी। मध्य काल के अग्रिम भाग में विभिन्न पुराणों की रचना हुई। जिससे अनेक कल्पित अवतार प्रचलित हुए। विभिन्न अवतारों की मूर्तियां बनने लगी। कालांतर में देवियों का प्रवेश हुआ। मूर्तिपूजा में विभिन्न मतों के प्रवर्तकों, गुरुओं आदि जुड़ गए। अगली सीढ़ी तो अभी बहुत दूर थी। कलियुग में केवल मूर्ति का सहारा ऐसा सिखाया गया। इसका प्रभाव ऐसा हुआ कि मूर्तिपूजा में अब एक ऐसा दौर आया कि लोग श्री राम, श्री कृष्ण और वीरवर हनुमान जी को भी भूलने लग गए। महान पुरुषों का स्थान अब साईं बाबा उर्फ़ चाँद मियां एवं अजमेर वाले गरीब नवाज़ की कब्र ने ले लिया। बुत परस्ती अब कब्र परस्ती में बदल गई। जिन हिन्दुओं को अगली सीढ़ी चढ़ना था वो जमीन के अंदर समा गए। अक्ल में दखल देना बंद हुआ। हिन्दुओं को इतनी भी मति न रही कि साईं बाबा और गरीब नवाज सभी बिगड़े काम बनाने वाले बन गए। राम और कृष्ण के मंदिरों खाली हो गए। रामायण-महाभारत और गीता का पाठ छूट गया। वेद, दर्शन और स्मृतियों का स्वाध्याय तो अतीत कि बात हो गई। साईं संध्या गाई जा रही है। अब कब्रों पर कलमा पढ़ सुन्नत की तैयारी हो रही है।


आगे ईश्वर ही इस हिन्दू समाज का रक्षक होगा। इसलिए मित्रों इस काल्पनिक तर्क से बाहर निकले कि मूर्तिपूजा अध्यात्म की पहली सीढ़ी है। मूर्तिपूजा सीढ़ी नहीं अपितु गहरा गड्ढा है। इसमें जो एक बार गिरा। तो निकलने के लिए बहुत प्रयास करना होगा।
आईये वेद विदित निराकार ईश्वर कि स्तुति, प्रार्थना और उपासना अपने ह्रदय में स्थित आत्मा में ही करें। इसी में हिन्दू समाज का भला है।
(इस लेख का उद्देश्य हिन्दू समाज में मूर्तिपूजा के कारण हो रही दुर्दशा से सभी को परिचित करवाना है। कृपया निष्पक्ष रूप से अपनी प्रतिक्रिया दीजिये) आर्य समाज दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
लेख 
डॉ विवेक आर्य 

Wednesday 27 July 2016

नई शिक्षा निति में लागू हो संस्कृत!!

यदि आप संस्कृत की दी हुई रोटी खाते हैं तो सभी सदस्यों से निवेदन इस पत्र को मानव संसाधन विकास मंत्रालय कोnep.edu@gov.in पर ईमेल करें। आप और भी कुछ जोड़ने के लिए स्वतन्त्र हैं।सुझाव भेजने की अन्तिम तिथि ३१/०७/२०१६ है।आप अपना नाम तथा हस्ताक्षर कर साधारण डाक से भी भेज सकते हैं।आज आपके पास अवसर है। आगे आने वाले २० वर्षों तक संस्कृत को सुरक्षित रखने में अपना योगदान करें। यह ऐतिहासिक क्षण है। अपनी वफादारी निभाएं।

.......प्रिय सदस्यों! नई शिक्षानीति २०१६ की कमेटी ने संस्कृत बोलने/ समझने वाले लोगों की संख्या जनगणना २००१का हवाला देखते हुए १४०००(चौदह हजार), हिन्दी बोलने वाले लोगों की संख्या ४०℅ (अड़तालीस करोड़)पूरे देश में बताकर महत्वहीन माना है तथा उचित स्थान नहीं दिया। पूरे देश में केवल ३℅ अंग्रेजी जानने वालों की सुविधा का ध्यान रखते हुए पूरे देश पर अंग्रेजी थोप दी गयी है।अंग्रेजी माध्यम और अंग्रेजी को अनिवार्य कर दिया है । अत: यह समय व्यर्थ के चुटकुलों , आराम के संदेशों का नहीं है। hrd को ईमेल करने का है। कविता,कहानी ३१ जुलाई के बाद जी भर के शेयर करना।फिलहाल जिसकी कृपा से रोटी,कपड़े, गाड़ी,मकान ,सैर-सपाटा आदि का सतत आनन्द आप,आपके बच्चे ले रहे हैं,उसके संरक्षण एवं संवर्धन को सुनिश्चत करने के लिए nep.edu@gov.in पर ईमेल करो। देश और देश की भाषाओं के प्रति वफादारी दिखाओ।
जिन सदस्यों ने संस्कृत भाषा को नई शिक्षानीति २०१६ में उचित स्थान देने के लिए सुझाव ईमेल किये हैं, उन सभी का हार्दिक आभार। अब आप अपने मित्रों से ईमेल कराने का प्रयास करें। संस्कृत विरोधी लोग लोकसभा तथा राज्यसभा में सक्रिय हो चुके हैं। आप सभी से निवेदन है कि आप अपने राजनैतिक प्रतिनिधियों के सहयोग हेतु  प्रयास शुरू करें। अब तक हम ५ सांसदों की ओर से सुझाव भिजवा चुके हैं तथा आगे भी प्रयास जारी है।
डॉ व्रजेश गौतम ,अध्यक्ष ,संस्कृत शिक्षक संघ दिल्ली
सम्पर्क सूत्र 9968812963
9868879710 डॉ दयालु (महासचिव) (दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा) 

Wednesday 13 July 2016

सवेंदनशीलता की अनूठी मिसाल

पिछले दिनों मुम्बई की सड़क पर दुर्घटना में एक कुत्ते और आदमी की मौत हो गयी थी दुर्घटना के काफी देर बाद तक उस आदमी के पास से लोग गुजरते तो रहे पर कोई पास नहीं आया| किन्तु उस मृत कुत्ते के पास एक कुत्ता बैठा पाया| यही हाल उत्तराखंड में देखने को मिला| शायद इंसानों को संवेदनशीलता के मामले में इन बेजुबान जानवरों से कुछ सीख लेना चाहिए उत्‍तराखंड के चंपावत में बंदरों ने इंसानियत की एक ऐसी मिशाल पेश की जिसे शायद इंसान भी ना पेश कर सके। मगर दुख भरी बात यह रही कि सभी बंदरों को अपनी जान देनी पड़ी। चंपावत के लोहाघाट रोडवेज कार्यशाला में बने पानी के टैंक में एक बंदर का बच्‍चा डूबने लगा। यह देखकर 10 बंदर उसे बचाने के लिए टैंक में कूद गए। फिर बंदर पानी से बाहर नहीं निकल पाए और उनकी मौत हो गई।
सूचना पाकर मौके पर पहुंची वन विभाग की टीम ने सभी बंदरों के शवों को बाहर निकाला और पोस्‍टमार्टम के लिए भेज दिया। बाद में उन्‍हें रोडवेज कार्यशाला परिसर में दफना दिया गया। जानकारी के मुताबिक सोमवार की देर शाम एक बंदर का बच्चा अपनी मां से बिछड़ कर छमनियां स्थित रोडवेज कार्यशाला परिसर में वाहनों की साफ-सफाई के लिए बने पानी के टैंक में गिर गया, जिसे बचाने की खातिर अन्य सभी बंदर टैंक में कूद गए।
हालांकि टैंक में पानी करीब तीन फिट था, लेकिन टैंक की करीब 10 फिट की गहराई होने के कारण कोई भी बंदर वहां से निकल नहीं पाया। काफी देर तक टैंक में फंसे रहने के कारण टैंक में डूबे सभी 10 बंदरों की मौत हो गई।..........दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा खबर और चित्र डेली हंट से साभार