Thursday 15 February 2018

क्या है पवित्र यज्ञ!


शब्दार्थ-देवाः=हे देवो! हम कर्णेभिः=कानों से भद्रम्=भद्र का ही शृणुयाम=श्रवण करें। यजत्राः=हे यजनीय देवो अक्षभिः=हम आँखों से भद्रं पश्येम=भद्र को ही देखें। स्थिरैः= अÂः=अपने दृढ़ अंगों से तनूभिः=शरीरों से तुष्टुवांसः=सदा स्तुति-पूजन करते हुए ही यत् देवहितं आयुः=जो हमारी देवों द्वारा स्थापित आयु है, उसे व्यशेम=प्राप्त कर लें।
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरै रस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः।।-). 1/89/8ऋ यजुः. 25/31ऋ साम. उ. 9/3/9
ऋषि -गोतमो राहूगणपुत्रः।। देवता-विश्वेदेवाः।। छन्दः- विराट्त्रिष्टुप्।।
विनय- मन, वाणी और इन्द्रियों के अगोचर भगवान् तो हमें दीखते नहीं हैं। देवो! उनके हाथों के रूप में हम तुम्हें ही देख पाते हैं। वे भगवान् तुम्हारे द्वारा ही इस सब ब्रह्माण्ड को चला रहे हैं। इसलिए हे देवो! हम तुम्हें ही सम्बोधन करते हैं। इस संसार में जन्म पाकर जब होश आया है तब हम देखते हैं कि हम सबको एक दिन मरना है, एक निश्चित आयु तक ही हमें जीना है। तुमने मनुष्य की सामान्य आयु सौ वर्ष की रक्खी है। हे यजत्रा’! हे यजनीय देवो! हमें तुम्हारा यजन करते हुए ही 100, 116 या 120 वर्ष तक जीवित रहना चाहिए। इसके लिए, हे देवो! हम अपने कानों से सदा भद्र का ही श्रवण करें. जो यजनीय है, जो उचित है, जो कल्याणकारी है, केवल उसे ही सुनें। आँखों से, जो कुछ यजनीय है केवल उसे ही देखें। अभद्र वस्तु, बुरी, अनुचित वस्तु में हमारे कान-आँख कभी न जाएँ। हे देवो! यही तुम्हारा यजन है, यही तुम द्वारा उस भगवान् का यजन है। हे देवो! तुम्हारे अंशों से हमारे शरीर की एक-एक इन्द्रिय और एक-एक अंग उत्पन्न हुए हैं। जिस-जिस देव से हमारा जो-जो इन्द्रिय वा अंग बना है, उस-उस अंग द्वारा सदा भद्र का सेवन करना ही उस-उस देव का यजन करना है। हे देवो! इसी प्रकार हम अपनी एक-एक इन्द्रिय से तुम्हारा यजन करते रहेंगे। हमारे हाथ और पैर सदा भद्र का ही सेवन करने के कारण पूर्ण आयु तक चलने योग्य, दृढ़ और बलवान् होंगे। इन दृढ़ हाथों और पैरों से हम जो कुछ ग्रहण करते हैं, जो कुछ चलते हैं, वह सब तुम द्वारा प्रभु की स्तुति करना है। एवं, हम अपने एक-एक बलिष्ठ स्वस्थ अंग से जो भी कुछ भद्र चेष्टा व गति करते हैं, हे देवो! वह सब प्रभु-यजन है। हम चाहते हैं कि इसी प्रकार हम अपने एक-एक अंग से सदा भद्र ही करते हुए तुम्हारी दी हुई यज्ञिक आयु को पूर्ण कर दें।
अहा! अपने स्वस्थ, बलिष्ठ, पवित्र अंगों द्वारा सदा भद्र का ही सेवन करने वाले के लिए यह जीवन एक कैसा पवित्र यज्ञ बन जाता है!
आर्य समाज दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा 

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