Monday 19 February 2018

तेरी लीला


अनुत्तमा ते मघवन्नकिर्नु न त्वावाँ अस्ति देवता विदानः।
न जायमानो नशते न जातो यानि करिष्या कृणुहि प्रवृ(।।-). 11659
ऋषि -अगरत्यः।। देवता-इन्द्रः।। छन्दः-त्रिष्टुप्।।
विनय-हे सर्वैश्वर्यशालिन्! मैं आज देख रहा हूँ कि इस विश्व का सब-कुछ-छोटे-से-छोटा और बड़े-से-बड़ा-तेरे हिलाये हिल रहा है। ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है जो तेरी प्रेरणा से प्रेरित नहीं हो रही हो। इस ब्रह्माण्ड-सागर की क्षुद्र और महान्-से-महान् सब लहरें तू ही पैदा कर रहा है। जगत् के अनन्त परमाणुओं में जो एक-एक परमाणु प्रतिक्षण गतिशील है, चींटी से कुंजर तक जो सब प्राणी चेष्टा कर रहे हैं, मनुष्य के वैयक्तिक जीवन और मनुष्य-संघ के समष्टि जीवन में जो नित्य छोटे-बड़े परिवर्तन हो रहे हैं, भूकम्प, वर्षा, वायु, अग्नि, )तु आदि रूप से जो आधिदैविक जगत् निरन्तर बदल रहा है-यह एक जगत् क्या, ऐसे-ऐसे जो कोटि-कोटि अनन्त जगत्, जो असंख्यात सूर्य और पृथिवियाँ, इस महाकाश में चक्कर लगा रहे हैं-ये सब-के-सब, तेरी ही दी हुई गति से, तेरी ही प्रेरणा से चल रहे हैं। तू अपनी पूर्ण ज्ञानमयी ठीक-ठीक गति देकर इस सब संसार को नचा रहा है। हम मनुष्य क्या, बड़े-से बड़े ज्ञानी देव भी तेरे असीम ज्ञान का पार नहीं पा सकते। ये सब तेरे ज्ञान को असीम-अनन्त कह-कहकर अपनी अज्ञानता को ही प्रकाशित करते हैं। ज्यों-ज्यों हमारा ज्ञान बढ़ता जाता है त्यों-ज्यों पता लगता जाता है कि तू कितना-कितना महान् है! हे महान्! हे परम महान्!! तेरी महत्ता के आकाश का अन्त हमारा कल्पनापक्षी अपनी ऊँची-से-ऊँची उड़ान से भी नहीं पा सकताऋ वह हार मानकर, थक-थकाकर, शान्त हो जाता है। तब हम तेरी महत्ता को अनन्त मानकर और तेरी लीला को अगम्य कहकर चुप हो जाते हैं। इतना ही कह सकते हैं कि इस जगत् में जो कुछ पैदा हुआ है, हो रहा है या होगा, उनमें से किसी में भी ऐसी शक्ति नहीं है जो तेरी लीला को समझ सके, जो तेरे द्वारा की जानेवाली या की जा रही लीला के किसी ओर-छोर को पा सके। जो तेरी लीला की अधिक-से-अधिक सच्ची, नजदीकी और पूरी खबर लाता है तो वह यही खबर लाता है कि तेरी लीला अगम्य है, तेरी लीला अगम्य है। 
शब्दार्थ-आ=अहो, सच है कि मघवन्=हे सर्वैश्वर्ययुक्त! नु ते अनुत्तम्1 न किः=निःसन्देह ऐसी कोई वस्तु नहीं है जोकि तुझसे अप्रेरित है-जो तुझसे प्रेरित नहीं है, त्वावान् विदानः देवता न अस्ति=तेरे समान ज्ञानवाला कोई देवता भी नहीं है, प्रवृ(=हे परम महान् न जायमानः न जातः=न तो कोई उत्पन्न होनेवाली और न कोई उत्पन्न हुई वस्तु है ;तानिद्ध नशते=जो तेरे उन कर्मों तक पहुँचती है यानि करिष्या, कृणुहि=जिन कर्मों को तू करेगा या कर रहा है।

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