Friday 9 June 2017

गुरुकुल, पौंधा-देहरादून में आयोजित 4 दिवसीय स्वाध्याय शिविर

ओ३म्
-गुरुकुल, पौंधा-देहरादून में आयोजित 4 दिवसीय स्वाध्याय शिविर का दूसरा दिन-
बुरे काम करने और दिखाने के लिए ईश्वर की उपासना करने वाले मनुष्यों को ईश्वर कभी प्राप्त नहीं होताः डा. सोमदेव शास्त्री
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आज मंगलवार 30 मई, 2017 को गुरुकुल पौंधा, देहरादून में आयोजित 4 दिवसीय ऋग्वेदादिभाष्य-भूमिका स्वाध्याय शिविर दूसरे दिन भी आचार्य डा. सोमनाथ शास्त्री, मुम्बई के पावन सान्निध्य में जारी रहा। शिविर में भाष्य-भूमिका के उपासना विषय का अध्ययन वा स्वाध्याय चल रहा है। प्रथम दिन उपासना विषय के प्रथम 7 मन्त्रों तक का स्वाध्याय सम्पन्न हुआ था। आज आठवें मन्त्र से स्वाध्याय आरम्भ किया गया। शिविर में आचार्य डा. सोमदेव शास्त्री जी प्रथम विषय को स्पष्ट करते हैं। उसके बाद मन्त्र को पढ़कर ऋषि दयानन्द द्वारा किये गये मन्त्र के सभी पदों वा शब्दों का अर्थ समझाते हैं। फिर ऋषि द्वारा की गई व्याख्या पर प्रकाश डाला जाता है। उसके बाद मन्त्र के हिन्दी अर्थ को एक श्रोता द्वारा पढ़ा जाता है। श्रोता द्वारा पढ़े गये अर्थों को आचार्य जी और गम्भीरता से समझाते हैं। मन्त्र व उसके अर्थों से संबंधित अन्य बातों को भी आचार्य जी बताते रहते हैं। आचार्य जी जिस प्रकार से वर्णन करते हैं उससे उनके वैदिक एवं ऋषि वांग्मय के गम्भीर ज्ञान का श्रोताओं को ज्ञान होता है। सभी श्रोता इस स्वाध्याय शिविर में भाग लेकर स्वयं को धन्य अनुभव कर रहे हैं। आज प्रातः 10 बजे ऋग्वेदभाष्य-भूमिका के आठवें मन्त्रअष्टाविशानि शिवानि शग्मानि सह योगं भजन्तु में। ... मन्त्र से पाठ आरम्भ हुआ जो प्रातः एवं अपरान्ह के सत्रों में योगदर्शन के 12 वें सूत्र के अध्ययन तक चला। इस बीच आचार्य जी ने जो महत्वपूर्ण बातें कहीं और जिन्हें हम नोट कर सके, वह प्रस्तुत कर रहे हैं।
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आचार्य जी ने कहा कि हमें ईश्वर की हर प्रकार से स्तुति करनी चाहिये। जो हमने ग्रन्थों में पढ़ा है, उसकी बार बार आवृत्ति करनी चाहिये। संसार में ब्रह्म से बड़ा और कोई तत्व नहीं हो सकता। वह सारे संसार को बनाने वाला है। उस परमात्मा को जानकर और उसका निश्चय करके उसे जीवन में सबको धारण करना चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि सब तरफ से अपने मन को हटाके परमात्मा के स्वरूप में उसे स्थित करें। ईश्वर के गुणों को भी हम सबको धारण करना है। परमात्मा सत्य स्वरूप है। हमारे व्यवहार में सत्य होना चाहिये। ऋषि दयानन्द के सत्य के प्रति निष्ठा का उदाहरण देते हुए आचार्य जी ने उन्हीं के कहे शब्दों को स्मरण कराया जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि उन्हें तोप के मुंह से बांध कर पूछा जाये तब भी उनके मुंह से सत्य ही निकलेगा। आचार्य जी ने कहा कि यह सत्य को धारण करने की स्थिति है। उन्होंने कहा कि गलत कामों को करने वाला ईश्वर का उपासक कदापि नहीं हो सकता। जो मनुष्य दिखाने के लिए ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना करते हैं, उन्हें परमात्मा कभी प्राप्त नहीं होता। आचार्य जी ने लौकिक विषयों में मन की एकाग्रता का उदाहरण देते हुए क्रिकेट के खेल और प्रसिद्ध टीवी सीरियलों की चर्चा की। आचार्य जी ने कहा कि जब इन व ऐसे अनेक कार्यों में मन को एकाग्र किया जा सकता है तो ईश्वर की उपासना में मन को एकाग्र क्यों नहीं किया जा सकता? जिस मनुष्य का मन वा अन्तःकरण शुद्ध होता है, वही अपने मन को परमात्मा में लगा सकता है। आचार्य जी ने बताया कि ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका का प्रकाशन एक पत्रिका की तरह मासिक अंकों में हुआ था। जो लोग महर्षि दयानन्द का वेद भाष्य क्रय करते थे उन्हें ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका लेना अनिवार्य होता था।
आचार्य डा. सोमदेव शास्त्री, मुम्बई ने बताया कि ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के अंक 13 14 में इसके ग्राहकों की एक सूची प्रकाशित हुई थी जिसमें प्रथम स्थान पर प्रोफेसर मैक्समूलर का नाम था। वेदों के अध्येता प्रो. विल्सन का नाम भी ग्राहक सूची में था। आचार्य जी ने कहा कि मैक्समूलर ऋषि दयानन्द के वेदभाष्य को पढ़कर प्रभावित हुए थे। प्रो. मैक्समूलर भारत में नियुक्त होने वाले सिविल व पुलिस सर्विस के अधिकारियों को भारत आने से पहलेे लैक्चर दिया करते थे। उनके व्याख्यानों का वह संकलन हम भारत से क्या सीखें?’ नाम से प्रकाशित हुआ है। इस पुस्तक में मैक्समूलर ने ऋषि दयानन्द और भारत देश की प्राचीन संस्कृति की प्रशंसा की है। आचार्य जी ने यह भी बताया कि प्रो. मैक्समूलर ऋषि दयानन्द की मृत्यु के बाद उनका जीवन चरित लिखना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने परोपकारिणी सभा से पत्रव्यवहार भी किया था। खेद है कि परोपकारिणी सभा व पंजाब आर्य प्रतिनिधि सभा व आर्यसमाज के उस समय के प्रमुख विद्वानों ने उन्हें उसका समुचित उत्तर नहीं दिया। आचार्य जी ने कहा कि यदि मैक्समूलर को ऋषि जीवन की जानकारी उपलब्ध कराई जाती और वह जीवन चरित्र लिख देते तो ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज का यूरोप में बहुत प्रचार होता।

 लेख मनमोहन कुमार आर्य 

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