Friday 30 June 2017

हमारी महिलाएं सब जड़ी बूटियों की ज्ञाता हों

वेद का कथन है कि हमारी नारियां उत्तमा तथा विदुषी हीनी चाहियें. जब तक नारी उत्तमा नहीं होगी, जब तक नारी विदुषी नहीं होगी, तब तक वह अपने परिवार का कल्याण नहीं कर सकेंगी, तब तक यह नारी संसार के कल्याण के कार्य न कर सकेंगी. इस लिए वेदानुसार नारी को उत्तमा बनना आवश्यक है. इसलिए ही नारी के लिए वेद की शिक्षा ग्रहण करना ही इस संसार के कल्याण का एक मात्र साधन है. अन्य कोई नहीं. इस की ही चर्चा यहाँ वेद मन्त्र के द्वारा की जा रही है. यथा-

याश्चेदमुपशरीण्वन्ति याश्च दूरं परागातारू. सवार्रू संगत्य वीरुधोैस्ये संदत्त वीर्यम् ||यजुर्वेद १२.९४||
मन्त्र उपदेश कर रहा है कि हमारी माताएं वैद्यक विज्ञान में एक उत्तम वैद्य के समान पारंगत हों. हमारे निवास के आसपास बहुत से ओषध पदार्थ विद्यमान होते हैं. हमारे आसपास बहुत से ओषधीय पौधे लगे होते हैं. अन्य भी अनेक प्रकार की वस्तुएं हमारे आसपास उपलब्ध होती हैं, जो रोग निवारण के लिए अत्यंत उपयोगी होती हैं मन्त्र का स्पष्ट उपदेश है कि हमारी महिलाएं अपने आसपास उपलब्ध होने वाले इन ओषधीय गुणों से भरपूर पदार्थों तथा जड़ी बूटियों से भली प्रकार से परिचित हों.
वेद तो यह भी उपदेश कर रहा है कि अनेक प्रकार की ओषधियाँ तो हमारे आस पास उपलब्ध होती, किन्तु बहुत सी ओषधियाँ एसी भी होती हैं जो किसी विशेष क्षेत्र में होती हैं. जैसे कुछ ओषध हमारे अपने देश में उपलब्ध नहीं होती, जिन्हें विदेश से मंगवाना पड़ता है. बहुत सी ओषध केवल जंगलों में होती हैं. अनेक ओषध इस प्रकार की होती हैं जिन का उत्पति स्थान केवल पर्वत ही होते हैं. अनेक ओषध केवल नदियों के किनारे पर ही मिलती हैं जब कि अनेक ओषध केवल टूटे फूटे पुराने भवनों में ही दिखाई देती हैं. मन्त्र कहता है कि हमारी पत्नियां केवल आस पास की ओषध का ही ज्ञान न रखने वाली हों अपितु उन्हें इन सब दूरस्थ ओषध का भी ज्ञान होना चाहिए, जो पहाड़ों, जंगलों , नदियों, खंडहरों तथा यहाँ तक कि देश में न होकर विदेश में ही उपलब्ध हों.
ऊपर बताई गई सब ओषध का वर्णन करते हुए मन्त्र उपदेश कर रहा है कि हे परमपिता परमात्मा! जिस प्रकार एक अनुभवी वैद्य, एक अनुभवी चिकित्सक इन सब प्रकार की यथावश्यक ओषध को प्राप्त करके मानवीय शरीर के पराक्रम को सिद्ध करते हैं अथवा इन ओषध के प्रयोग से जिस प्रकार वैद्य लोग मानव के रोगों को दूर कर, उनके कल्याण का कार्य करते हैं, हे प्रभु!, हे वेद माता! ठीक इस प्रकार का ओषधीय ज्ञान हमारे घर की इन महिलाओं को दीजिये ताकि यह महिलाएं इन ओषध का प्रयोग अपने घर तथा अपने पास पडौस के उन लोगों पर करें, जो किसी कारण किसी व्याधि को, किसी रोग को प्राप्त हो रहे होते हैं. हमारी महिलाओं के इस ओषध प्रयोग से उन्हें स्वास्थ्य लाभ मिले, उनका कल्याण हो.
वेद मन्त्र में एक शब्द प्रयोग हुआ है अस्यै” . यह शब्द स्त्रीलिंग में है. इस स्त्रीलिंग शब्द के प्रयोग से ऋषि आश्वस्त होते हैं कि स्त्रियों के लिए वैद्यक शिक्षा का ज्ञान होना अति आवश्यक है. वेद में एक अन्य वचन भी पाया जाता है, जिसे सरस्वती भिषक्के रूप में जाना जाता है. इस शब्द से भी स्पष्ट होता है कि हमारी महिलाएं भिषक् अथवा पारंगत उत्तम वैद्य हों. उत्तम चिकित्सा शास्त्र का उन्हें ज्ञान हो तथा वह उत्तम प्रकार की चिकित्सा करने में सक्षम हों.
वेद हमारे धर्म का आधार हैं, वेद ही हमारे सब कर्मों का आधार हैं. वेद जब बार बार चिकित्स्यीय क्षेत्र में माताओं के लिए पारंगत होने के लिए कह रहा है तो निश्चय ही हमारी स्त्रियों के लिए चिकित्सा शास्त्र का ज्ञान होना आवश्यक हो जाता है. इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि हमारी महिलाएं किसी उत्तम गुरु के पास बैठ कर, उसके चरण धूलि प्राप्त आर, उससे वेदानुसार सब प्रकार की चिकित्साओं में स्वयंको पारंगत कर समाज के कल्याण तथा उत्थानके लिए कार्य करें.

डॉ अशोक आर्य 

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