Friday 27 October 2017

स्वामी आनन्द बोध सरस्वती पूर्व नाम लाला रामगोपाल शालवाले की हैदराबाद आर्य सत्याग्रह (धर्मयुद्ध) में भूमिका

हैदराबाद आर्य सत्याग्रह 20 जनवरी सन् 1939 को आरम्भ हुआ था। इसे आर्यसमाज का धर्मयुद्ध नाम दिया जाता है। आर्यसमाज की मांगों के समर्थन में निजाम स्टेट तथा देश के अन्य भागों के हजारों आर्यों (हिन्दुओं) ने आर्य-सत्याग्रह में अपनी गिरफ्तारी दी। पं. व्यासदेव जी शास्त्री के साथ लाला रामगोपाल सत्याग्रह के इंचार्ज बनाए गए। उन्हें आज्ञा दी गई थी कि वे अपनी गिरफ्तारी दें और आन्दोलन को संगठित करते रहे। आर्य सत्याग्रह 6 महीने अर्थात् 8 अगस्त, सन् 1939 के दिन सफलता के साथ समाप्त हुआ। तब तक लाला रामगोपाल शालवाले जी निरन्तर आर्यसमाज दीवानहाल में रहे।

आर्य सत्याग्रह के नेताओं एवं सत्याग्रहियों पर भयंकर अत्याचार किए गए, इन्हें यातनाएं दी गई परन्तु उनका मनोबल डिगाया जा सका।

अन्त में निजाम को घुटने टेकने पड़े तथा आर्यसमाज की मांगे स्वीकार करनी पड़ी। इस सत्याग्रह ने आर्यसमाज की शक्ति और उसके जीवन में वृद्धि की थी। निजाम की जेलों से छूटकर दिल्ली आने वाले नेताओं एवं सत्याग्रहियों की संख्या लगभग 25 हजार थी। अन्यत्र छूटे हुए सत्याग्रही अपने-अपने गृह स्थानों को चले गये थे। मुख्यतः लाला रामगोपाल की प्रेरणा पर सेठ जुगल किशोर बिड़ला ने अपने खर्चे पर 25,000 सत्याग्रहियों के भोजन का प्रबन्ध किया था।

हम सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के पूर्व प्रधान स्वामी आनन्द बोध सरस्वती की स्मृति को नमन करते हुए उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देते हैं। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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