यजुर्वेद ही
नहीं ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में भी अनेक मन्त्र राजा प्रजा धर्म के सम्बन्ध में दिए
गए हैं, जिन से पता चलता है कि राजा का चुनाव करने के लिए मतदान करते समय हम
किन किन बातों का ध्यान रखें, अपने प्रत्याशी के लिए किन किन गुणों
की उसमें खोज करें द्य राजा के इन गुणों के आधार पर यह कहा गया है कि जब राजा
राजसूय यज्ञ करे तो उस समय इन मन्त्रों का उच्चारण अवश्य किया जावे अथवा यूं कहें
कि राजसूय यज्ञ के समय इन मंत्रों का उच्चारण करने की परम्परा रही है. हमारे
प्राचीन ग्रंथीं में भी इसका विधान किया गया है. इस में प्रजा को संबोधन करते हुए
राजा पद का प्रत्याशी इस प्रकार कहता है, सूर्यत्वचस स्थ
राष्ट्र्दा राष्ट्रं में दत्त. इस का भाव यह है कि हे सूर्य के समान तेजस्विनी
राष्ट्र्धिकार देनेवाली प्रजाओ! मुझे तुम इस राष्ट्र के प्रमुख पद को दो. अथवा वह
किसी अन्य योग्य व्यक्ति को प्रस्तुत करते हुए कहता है कि अमुक व्यक्ति इस पद के
योग्य है, उसे यह पद दो. यजुर्वेद के ही अध्याय बारह के मन्त्र संख्या बाईस में
भी इस प्रकार के प्रत्याशी के लिए अनेक गुणों का वर्णन किया है यथा:-
श्रीणामुदारो फंत}णंव रयीणां मनीषाणा̇̇̇ प्रार्पण: सोमागोपा.
वासुरू सूनु: सहसोअप्सु राजा
विभात्यग्रैउषसामिधान ||यजुर्वेद १२.२२||
इस मन्त्र का अनुवाद स्वामी दयानंद
सरस्वती जी ने इस प्रकार किया है.
सब
मनुष्यों को उचित है कि सुपात्रों को दान देने वाला, धन को
व्यर्थ खर्च न करने वाला, सब को विद्या वृद्धि देने वाला,
जिसने ब्रह्मचर्य का सेवन किया और जितेन्द्रिय है, ऐसे
पिता का पुत्र योगांगों के अनुष्ठान से प्रकाशमान, सूर्य के
समान उत्तम गुण, कर्म और स्वभाव से सुशोभित और पिता के समान
अच्छे प्रकार प्रजा का पालन करने वाला जो पुरुष है , उसी को
जनता के राज्य के लिए ( जनराज्याय ) अभिषिक्त करें.
स्वामी जी के दिए इस भावार्थ से ही राजा
के गुणों के दर्शन हो जाते हैं द्य आओ अब हम इस मन्त्र को कुछ और अधिक सरल व
प्रचलित भाषा के आधार पर समझने का यत्न करें:
मन्त्र उपदेश करते हुए कह रहा है कि राजा
का धनवान तथा सब प्रकार के ऐश्वर्यों का स्वामी होना आवश्यक है ताकि वह अपने इस धन
एश्वर्य को राज्य व्यवस्था व सत्पात्र लोगों में बड़ी उदारता से बाँट सके या उनके
भरण - पोषण में व्यय कर सके द्य वह उदार ह्रदय से कृपण लोगों की सहायता करने की
इच्छा रखता हो. इस प्रकार के लोगों को वह धारण करने वाला हो. वह न केवल अनेक
प्रकार की मतियों को, अनेक प्रकार की बुद्धियों को, अनेक
प्रकार की विद्याओं को जानने वाला ही हो, अपितु इन सब को
अपनी प्रजा में बांटने वाला भी हो अर्थात् प्रजाओं को सब प्रकार की विद्याओं से
सुपठित करने के लिए अनेक प्रकार के गुरुकुल अथवा विद्यालय चलाने वाला हो.
राजा में कुछ इस प्रकार के गुण हो, इस
प्रकार की विशेषताएं हों कि जिससे उसका राष्ट्र, उसके द्वारा
शासित देश धन ऐश्वर्यों का स्वामी बनते हुए शांत स्वभाव वाला हो तथा विद्वानों की
वह सदा रक्षा करे क्योंकि जहां विद्वानों का निवास होता है, वहां ही
सुखों की वर्षा होती है. राजा का यह भी एक महत्वपूर्ण गुण है कि वह प्रजाओं को
बसाने वाला हो अर्थात् धन एश्वर्य , निवास ,भरण पोषण
आदि सब प्रकार की सुविधाएं अपनी प्रजा को देने की सामर्थ्य उसमें हो. उसके राज्य
में कोई अनपढ़ न रहे, कोई नंगा, छतहीन या
भूखा न रहे. इस प्रकार के साधन अपने राज्य में उत्पन्न करना वह अपना मुख्य कर्तव्य
मानता हो.
राजा के पास इतनी शक्ति व इतनी सेना हो,
जो सब प्रकार के आधुनिकतम शत्रास्त्रों से सुसज्जित हो तथा देश के
शत्रुओं को मार भगाने की शक्ति उसमें हो वह अपने.
३
देश की रक्षा
उत्तम विधि से कर सकें द्य न केवल वह स्वयं ही शक्तियों से संपन्न हो अपितु
प्रजाओं में भी बल का प्रेरक हो. व्यवस्थापक हो. राजा में एक उत्तम संचालक के गुण भी भरपूर हों. वह राज्य व्यवस्था
का बड़ी उत्तम प्रकार से संचालन करने की क्षमता रखता हो. जिस प्रकार दिन के आरम्भ
में सूर्य लालिमा लिए होता है उस प्रकार का तेज उसमें हो, जिस से
वह स्वयं को सुशोभित करने वाला , आलोकित करने वाला हो. जिस प्रकार उगता हुआ सूर्य नदियों व समुद्र के
जल में अपने प्रकाश से लालिमा भर कर उसे स्वर्णमयी बना देता है, उस
प्रकार ही राजा अपने आप में सूर्य की सी लालिमा, सूर्य का
सा तेज भरते हुए इसे अपनी सम्पूर्ण प्रजा को प्रदान कर सब प्रकार की लालिमा,
सब प्रकार के तेजों से, सब प्रकार के धन ऐश्वर्यों से भर कर
उन्हें शान्ति प्रिय तथा सुख, समृद्धि व धन ऐश्वर्यों का स्वामी
बनाने वाला हो.
राजा में जब इस प्रकार के गुण होंगे तो
निश्चय ही उसकी प्रजा उसके लिए मरने तक को भी तैयार रहेगी. सब प्रकार के यश व
कीर्ति की अधिकारी होगी तथा सब और सुख व शान्ति की वर्षा होगी. अत: राजा का चुनाव
करते समय उसमें इन गुणों की जांच अवश्य कर लेनी चाहिए अन्यथा हम प्रताड़ित होते
रहेंगे व दुरूखी होते रहेंगे. उत्तम शासक का चुनाव करते समय वेद के माध्यम से ही
हम समाधान निकालेंगे तो उत्तम रहेगा
क्योंकि वेद में ही सब समस्याओं का समाधान मिल सकता है , अन्यत्र
नहीं.
डा. अशोक आर्य
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