Friday 29 June 2018

मानव जीवन का श्रेष्ट कला है धर्म


सृष्टि कर्ता ने धरती पर विचरण करने वाले जितने भी प्राणी हैं उन सब में मानव को एक विशेष मर्यादा दिया है, की वह मानव है और मानव वह इसलिए भी है की ज्ञान, विवेक, बुद्धि, गंभीरता नीर, अकल, इस प्रकार के जितने जो कुछ भी हैं वह अन्य किसी और प्राणी को विधाता ने नहीं दिया, सिर्फ और सिर्फ यह मानव को मिला है.  मानव भी अपने किये कर्मों के अनुसार ही बना है, जन्म जन्मान्तरों के कर्मों के अनुसार ही मानव योनी को प्राप्त किया है.

इसी मानवता के आधार पर हम सबका नाम मानव पड़ा, अब सारे कर्तव्यों का दायित्व मानवों पर ही है अगर कोई उन कर्तव्यों को जानकर, समझकर पालन करता है तभी वह मानव कहला सकता है. अगर कोई उन कर्तव्यों का पालन नहीं करता है तो वह कदापि मानव कहलाने का अधिकारी नहीं बन सकता.  शास्त्रों में यही बताया गया जो धर्म को छोड़ देता है वह पशु के समान है.  अर्थात मानवों में और पशुओं में यही मात्र भेद है, अंतर है की हम धर्म पर आचरण करने के कारण हमारा नाम मानव है और पशुओं के लिए धर्म नहीं है इसी लिए उसका नाम पशु है.
इससे बात स्पष्ट हो गई की मानव मात्र के साथ जुड़ा है धर्म, जो मानवों को छोड़ अन्य किसी और प्राणी को यह सौभाग्य प्राप्त ही नहीं हुवा  जिसके लिए धर्म हो.  धर्म एक है जो मानव मात्र के लिए है.  और मत, पन्थ, सम्प्रदाय, अनेक हैं जो किसी व्यक्ति द्वारा मत पन्थ का जन्म होता है. मत, पन्थ को धर्म नहीं कहा जाता और ना कहा जा सकता है, कारण मत पंथ बनते हैं व्यक्ति के द्वारा, और धर्म बनता है ईश्वर द्वारा . धर्म उसी के बनाये हुए हैं जो इस ब्रह्माण्ड का बनाने वाला है. यह आकाश, पाताल, धर्ती, सागर, सूरज, चाँद, सितारा, ग्रह, उपग्रह, रात, दिन जो कुछ भी है सब उसी के बनाये हुए हैं, और सब के लिए बनाया है | किसी जाति वर्ग सम्प्रदाय के लिए नहीं है और ना तो किसी मुल्क वालों के लिए हैं.  
अगर यह सभी किसी व्यक्ति के बनाये होते तो मात्र वह अपने लोगों को देते दूसरों को नहीं देते, दूसरों के लिए नहीं होता. इससे इस बात का भी पता लगा की जब परमात्मा ने मानव को बनाया और मानव मात्र के लिए धर्म को बनाया, तो उस धर्म को मानव कहाँ से जान पाएंगे वही जानकारी जहाँ दी गयी उसी का नाम ज्ञान है, जिसे वेद कहा जाता है.  धरती पर जब मानव आया उसे धरती पर चलने के लिए ज्ञान चाहिए उसके बिना कर्म का करना संभव नहीं इसलिए विधाता ने मानव मात्र को जो ज्ञान दिया है उसे ही वेद के नाम से जाना जाता है.  जो मानव बनने के साथ साथ परमात्मा ने आदेश और निषेद दोनों का उपदेश ऋषियों के माध्यम से मानव मात्र को दिया है.
यही कारण है मानव मात्र की भाषा संस्कृत में परमात्मा ने ज्ञान दिया, किसी मुल्क वालों की भाषा में ज्ञान देने पर परमात्मा पर पक्षपात का दोष लगता.  यही कारण है की धरती पर मानव जन्म लेते जुबान खुलते ही स्वर निकलती है. और यह स्वर केवल संस्कृत में है अन्य किसी भी भाषा में स्वर नहीं है. यह अकाट्य प्रमाण है मानव मात्र को समझने के लिए, अगर कोई कहे हिब्रू भाषा में परमात्मा ने ज्ञान दिया, अथवा अरबी जुबान में अपना ज्ञान दिया.  तो कभी भीं संभव नहीं, इस लिए नहीं की यह सभी भाषाएँ मात्र देश या मुल्क विशेष के लिए है.  दूसरी बात है की धरती पर जन्म लेकर कोई भी बच्चा हिब्रू में अथवा अरबी में नहीं रोयेगा.  धरती पर आने वाले सभी की आवाज एक ही होती है स्वर =अई-उही निकलती है,दूसरी कोई और आवाज़ नहीं निकलती.
यह सभी प्रमाण मिलने के बाद भी कोई कहे, परमात्मा का दिया ज्ञान हिब्रू भाषा में है, या  फिर अरबी भाषा में है यह बात तर्क की कसौटी पर खरा उतरने वाली नहीं है. मानव उसी ज्ञान को अपनाते हुए अपना जीवन को बनाता है.  सृष्टि का निर्माण मनुष्य के हाथ नहीं है, और न जन्म और मृत्यु मनुष्य के हाथ में है.  इसका निर्माण एवं संचालन सृष्टि की उन अज्ञात शक्तियों द्वारा हो रहा है जिसे जानकर मनुष्य अपने जीवन की कार्य योजना बनाता है तथा उसी के अनुकूल चलकर मानव अपने जीवन को सुखी, संपन्न, समृद्ध, एवं विकासुन्मुख बनाता हुआ अपनी यात्रा तय करता है.  

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