Sunday 30 July 2017

कौन थे आर्य


आर्यों की जिन कहानियों को, जिनकी तस्वीरों को अबतक हम इतिहास की किताबों में देखते आए। वैसे 2200 शुद्ध आर्यन आज भी जिंदा हैं। इंसानों की एक ऐसी नस्ल, जिनसे होने वाले बच्चों की ख्वाहिश में न जाने कितनी विदेशी महिलाएं हर साल उन बस्तियों में जाती हैं। ऐसी ख्वाहिश रखने वाले एक महिला के मुताबिक मैं अपना नाम नहीं बताना चाहती। मैं जर्मनी के म्यूनिख से हूं। मैं यहां एक बच्चे की ख्वाहिश में आई हूं। शायद आप इसकी अहमियत समझते होंगे। 


महिला ने बताया क्योंकि सिर्फ यही एक जगह है जहां आपको असली आर्यन मिलते हैं। यही आर्यन का असली खून हैं। ये लोग बहुत सामान्य हैं। मैं ऐसा करने वाली पहली या आखिरी महिला नहीं हूं। इसके पीछे एक पूरा सिस्टम है, मैं जो कर रही हूं उसमें गलत क्या है? मैं जो चाहती हूं, उसके लिए पैसे दे रही हूं।

बता दें कि आर्यन हिंदुस्तानियों की सबसे पहली नस्ल है। आर्यन सबसे बाहुबली, सबसे बुद्धिमान, सबसे खूबसूरत और सबसे शुद्ध होते हैं। जिनकी ख्वाहिश में हर साल सैकड़ों विदेशी महिलाएं हिंदुस्तान की एक रहस्यमय बस्ती में आती हैं ताकि उनके होने वाले बच्चे की रगों में भी एक आर्यन की लहू दौड़े।




आर्यन की वो दुनिया हिंदुस्तान के एक ठंडे रेगिस्तान में बसी है और उसी दुनिया को पहली बार टीवी कैमरे पर कैद करने, आईबीएन7 की टीम भी एक लंबे सफर पर निकल पड़ी। आईबीएन7 की टीम की पहली मंजिल है दिल्ली के करीब 1200 किलोमीटर दूर लेह, जहां आर्यंस की वो पीढ़ी आज भी जिंदा है।

छोटे तिब्बत के नाम से मशहूर इस शहर में बौद्ध लामाओं की एक अद्भुत दुनिया बसती है, लेकिन इन्हीं वादियों में कहीं, कुछ ऐसे लोग भी है, जिन्होंने आजतक खुद को दुनिया की नजर से महफूज रखा। कुछ ऐसे शुद्ध आर्यन, जिनकी पीढ़ियों के करीब 2200 लोग आज भी जिंदा है।

दिल्ली से तकरीबन डेढ़ घंटें के हवाई सफर के बाद आईबीएन7 की टीम लद्दाख के लेह शहर पहुंच चुके हैं। यहां से आईबीएन7 की टीम की मंजिल 163 किलोमीटर है, जहां इंसानों की एक अजीबोगरीब दुनिया बसती है। कुदरत ने इस इलाके को बेपनाह खूबसूरती बख्शी है। लेकिन, इन वादियों के बीच हजारों सवाल भी इन फिजाओं में तैर रहे थे।

क्या हम उन्हीं आर्यन को देखने जा रहे हैं, जिनके पूर्वजों ने ही 5000 साल पहले हिंदुस्तान में कदम रखा, क्या ये वही लोग हैं, जिन्होंने इंसानों की पहली सभ्यता शुरु की? अगर ये वही हैं, तो दिखते कैसे होंगे, उनका रंग रूप कैसे होगा, उनकी कद-काठी कैसे होगी और क्या वैसी है, जैसी इतिहास की कहानियों में बताई गई?

लेह आकर आईबीएन7 की टीम को पता लगा, कि वाकई यहां आर्यन की एक गुमनाम दुनिया मौजूद है, लेकिन उनसे मिलने की इजाजत देश के किसी आम आदमी को नहीं, खुद उस गुमनाम बस्ती की गुजारिश पर सेना उन्हें बाहरी दुनिया से महफूज रखती है। इसलिए, उस रहस्यमय दुनिया में दाखिल होने के लिए हमें सरकारी इजाजत लेनी पड़ी।

आर्यों कौन थे, कहां से आए? इसे लेकर इतिहास में कई दावे होते हैं। पहला दावा ये, कि आर्यों की उत्पति तुर्की के अनातोलिया से हुई। दूसरे दावे में माना गया कि आर्य यूरोप के यूराल पर्वतों से आए थे और तीसरा दावा ये, कि आर्यों की शुरुआत हिंदुस्तान के हिमालय से हुई।

भारतीय संस्कृति में आर्यों का पहला जिक्र ऋग्वेद में मिलता है, जिसमें लिखा गया है कि अहं भूमिमददामार्याय यानी मैं यही भूमि आर्यों को देता हूं। वेदों के अलावा मनुस्मृतियों में भी आर्यों का जिक्र बार-बार हुआ, जिसमें उनकी शारीरिक रचनाओं का वर्णन किया गया। वाल्मिकी रामायण में कई बार भगवान राम को आर्य कहकर संबोधित किया गया, जबकि महाभारत में श्रीकृष्ण और गीता में अर्जुन के लिए आर्य शब्द का इस्तेमाल हुआ है। इतिहास के पन्नों को खंगालें, तो आर्य इंसानों की सबसे शुद्ध, सबसे श्रेष्ठ नस्ल थी, जिन्होंने पहली बार खेती की तकनीक विकसित की और दुनिया को पाषाण युग से बाहर ले आए।

पूरी दुनिया में आर्यों को लेकर एक लड़ाई हमेशा चलती रही। ये माना गया, कि आर्य योद्धाओं के दम पर ही सिकंदर ने विश्व विजय हासिल की और खुद को आर्यन साबित करने के लिए ही हिटलर ने दूसरे विश्व युद्ध में पूरी दुनिया से बगावत कर दी। लेह की वादियों में ये तलाश उन्हीं सच्चे आर्यंस की थी।

आईबीएन7 की टीम को आर्यों की जिस सबसे शुद्ध पीढ़ी की तलाश थी। उन लोगों की कोई तस्वीर न इंटरनेट पर थी, न किताबी-किस्सों में, लेकिन हमें बताया गया, कि उनकी वेश-भूषा, उनकी नीली आंखे, उनकी कद-काठी ही उनकी पहचान है क्योंकि लेह के इस इलाके में सामान्य लोगों की लंबाई पांच फीट के आसपास होती है, लेकिन आर्यों की उस गुमनाम बस्ती का हर शख्स छह फीट से भी लंबा होगा।

आईबीएन7 की टीम लेह की इन पहाड़ियों पर भटक ही रही थी, कि हमारे लिए एक स्थानीय शख्स उम्मीद बनकर सामने आया। आर्यों की उन रहस्यमय बस्ती की तरफ हमारा सफर शुरू हो गया। कुछ देर चलने के बाद ही हमें वो ऐतिहासिक सिंधु नदी भी दिखी, जिसका इतिहास ये कहता है कि इसी के इर्द-गिर्द ही आर्यों ने सिंधु घाटी सभ्यता विकसित की थी यानी आर्यों की उस पीढ़ी का यहां होना, कोई ताज्जुब की बात नहीं थी। हैरानी बस इतनी थी, कि आजतक आर्यों की वो दुनिया गुमनाम क्यों थी?

कहते हैं इसी सिंधु नदी के तट पर सिकंदर ने अपना अभियान खत्म किया था।एक मान्यता के मुताबिक इंसानों की जिस खास नस्ल की बात हम कर रहे हैं वो सिकंदर की सेना के सैनिकों के ही वंशज माने जाते हैं। कुछ ही देर के सफर के बाद हमें एक सरकारी बोर्ड दिखा, जो लेह में शुद्ध आर्यों की एक रहस्यमय दुनिया का प्रमाण बनकर सामने था। आईबीएन7 की टीम लेह से करीब 160 किलोमीटर दूर थी।

हमें बताया गया, कि इन पहाड़ों के ऊपर आर्यों के दो गांव हैं, जिनमें आज भी दो हजार से ज्यादा आर्यन जिंदा है। हम अपनी मंजिल के पहले पड़ाव यानि दाह गांव पहुंच चुके हैं, जहां के बाशिंदों के बारे में फिजाओं में अगर कुछ तैरती हैं तो वो हैं किस्से और कहानियां। बस कुछ ही देर के इंतजार के बाद वो किस्से-कहानियों, जैसे फिर जिंदा होने वाले थे।

दाह गांव में आबादी के पहले निशान। पुरानी और खास शैली में बना ये मकान इस बात की गवाही दे रहा है कि हम इंसानी आबादी के बेहद करीब हैं। दाह गांव चारों तक खूबसूरत पहाड़ो से घिरा था और हर तरफ फूलों से लदे खुरमानी के पेड़ नजर आ रहे थे। दाह गांव में आपको फूलों से लदे खुरमानी के पेड़ जगह-जगह नजर आ जाएंगे। खुरमानी यहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। खुरमानी दो तरह की होती है। मीठा खुरमानी और खट्टा खुरमानी।

आर्यों की उस रहस्यमय दुनिया में दाखिल होने की बेकरारी बढ़ती जा रही थी। चंद कदमों के बाद ही हमें उस गुमनाम दुनिया के कुछ चेहरे दिखाई दिए। एक अजीब मकान से बाहर निकलता एक शख्स, उसकी वेश-भूषा जैसे इतिहास के पुराने किरदारों की याद दिला रही थी कुछ और आगे बढ़े। तो लोक नृत्य की एक अजीब सी तस्वीर सामने थी। शायद ये आर्यन ही थे, जिनकी नीली आंखों में इतिहास का एक बहुत बड़ा समंदर दिखाई दे रहा था।

बेहद दिलचस्प था ये सबकुछ क्योंकि हमारे ही मुल्क में कुछ ऐसे लोग पहली बार हमारे सामने थे, जिनकी विरासत के लिए एक बहुत बड़ी लड़ाई लड़ी गई, जिनकी पहचान के लिए दुनिया के कई मुल्क आज भी बेताब हैं। कुछ ऐसे इंसान, जो सही मायनों में पहले हिंदुस्तानी थे। पहले आर्यपुत्र थे। बारी अब उनकी रहस्यमय दुनिया में झांकने की थी। ताकि पहली बार ये देश आर्यन की संस्कृति, आर्यन के संसार को करीब से देख पाए।))
साभार आईबीएन7...

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