Friday 6 January 2017

विश्व पुस्तक मेले में आर्य समाज क्यों?

कई रोज पहले की बात है दो लड़कियां ऑटो में जा थी जो आपस में चर्च और ईसाइयत की महानता का बखान कर रही थी. मैंने स्वभाव वश पूछ लिया, बहन आप इसाई हो? उन्होंने कहा नहीं! तो फिर अपने धर्म को भी जानों पढो, संसार में इससे महान कोई सभ्यता और धर्म नहीं है. उनमें से एक बोली कौन से धर्म की बात कर रहे हो भईया, आसाराम वाला, राधे माँ वाला, संत रामपाल या नित्यानद वाला? यह प्रश्न शूल की तरह मेरे ह्रदय में चुभा. हालाँकि आर्य युवक अपने तर्कों से अपनी क्षमता का परिचय देने में समर्थ हैं. पर गलती उन भोली-भाली लड़कियों की नहीं थी. गलती हमारी है क्योंकि बच्चों को जो दिया जाता है वो वही वापस मिलता है. जब हम बच्चों को कीर्तन जागरण पर नाच कूद और तथाकथित ढोंगी बाबाओं के पाखंड देंगे तो बदले में हमें यही जवाब मिलेंगे. वो समझेंगे शायद यही धर्म है. क्योंकि हमेशा से समाज में धर्म जीवन के हर पहलु को प्रभावित करता आया है जब तक हम बच्चों को वैदिक सभ्यता का वातावरण नहीं देंगे कुछ ऐसा नहीं देंगे कि उनमें संस्कार पनपे तब तक बच्चें माता-पिता का तिरस्कार करेंगे. चर्च की महानता का जिक्र करेंगे, कुरान का पाठ करेंगे, धर्मांतरण करेंगे. यदि आज आधुनिक शिक्षा के साथ वैदिक संस्कार मिले तो में दावे के साथ कह सकता हूँ आज भी राम, दशरत के कहने पर महल त्याग देगा. वरना तो वर्द्ध आश्रम के द्वार दशरत का स्वागत करेंगे...

आज सवाल यह है कि क्या सबके पास आर्ष साहित्य है? वर्तमान की चकाचोंध दिखाकर नई पीढ़ी को भ्रष्ट होने से बचाने के लिए क्या सबके पास तर्कों की कसोटी पर खरी उतरने वाली विश्व की एक मात्र पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश है? आखिर हम इन छोटी-छोटी अल्प मूल्य की पुस्तकें भी अपने घर क्यों नहीं रख पाए? क्या अगली पीढ़ी को संस्कारवान बनाने का कार्य हमारा नहीं है? अपनी बेटी-बेटे उनके कोमल मन पर हम वैदिक सभ्यता की छाप छोड़ने में पीछे क्यों? में उन्हें साधू संत बनाने की नहीं कह रहा बस इतना कि आपकी सेवा करे और आगे एक बेहतर समाज खड़ा करे. कुछ दिन पहले की बात है मेट्रो के अन्दर मैंने एक बुजुर्ग को कहते सुना कि आजकल के बच्चें मेट्रो के अन्दर दिए जाने वाले दिशा निर्देश का सही से पालन नहीं करते. फिर वो खुद ही बोल उठा, जो माँ-बाप की नहीं सुनते वो मेट्रो अनाउंसर की कैसे सुनेगे? यह वह दुःख है जो आज हर माँ-बाप किसी न किसी रूप में अपने अन्तस् में महसूस कर रहा है.

ऐसा नहीं है सब लोग धर्म से विमुख है बस यह सोचते है क्या होगा वेद पढने से क्या हासिल होगा सत्यार्थ प्रकाश पढने से! ये सब पुरानी बातें है आज आधुनिक जमाना है ये सब चीजें कोई मायने नहीं रखती आदि –आदि सवालों से अपने मन को बहला लेते है. पर जब हम जरा सा भी दुखी होते है तब सबसे पहले ईश्वर याद आता है. अच्छा आज अपनी आत्मा से एक छोटे से सवाल का जवाब देना बिलकुल निष्पक्ष होकर और यह सवाल किसी एक से नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवजाति से है, क्या अपने अस्तित्व का बोद्ध करना पाप है? क्या सत्य- असत्य को जानना न्याय-अन्याय को जानना तर्क संगत ठहराना अनुचित है? आखिर हमारा जन्म क्यों हुआ? दो जून का भोजन सैर सपाटा तो जानवर भी कर लेते है. या फिर सिर्फ इसलिए की हम बस मोबाईल पर गेम खेले या अपने घर परिवार तक सिमित रहे? जिस महान सभ्यता में वेदों की भूमि में हमारा जन्म हुआ क्या हम पर उत्तरदायित्व नहीं है कि इसका स्वरूप बिना बिगाड़े हम अगली पीढ़ी के हाथ में सोपने का कार्य करे?

अक्सर बातों-बातों यह सुना जाता है कि अब जमाना पहले जैसा नहीं रहा न बच्चों में संस्कार बचे न मर्यादा. पर कभी किसी ने सोचा है इसके जिम्मेदार कौन है जरा सोचिये जब हमे जमाना और संस्कार ठीक मिला था जिसका हम अक्सर जिक्र करते है तो उसका वर्तमान में स्वरूप क्यों बिगड़ा? में समझता हूँ कौन है उसका दोषी? दो चार घंटे कीर्तन-जागरण कर या गाड़ी में दो भजन चला लेना धर्म है? नहीं वो मनोरंजन हो सकता है लेकिन धर्म नहीं!! प्रत्येक परिवार जिसमें 4 लोग है ओसतन हर महीने 500 सौ या 700 रूपये का इन्टनेट डाटा इस्तेमाल कर लेते है. में यह नही कह रहा वो क्यों करते है यह सब आज जीवन का हिस्सा बन चूका है. लेकिन जब अपने ग्रंथो का मामला आता है तो हम बचत करते दिख जाते है. ऐसा क्यों? जबकि सब जानते है की इंटरनेट का प्रयोग एक बार बच्चे की मानसिकता धूमिल कर सकता है किन्तु हमारा वैदिक साहित्य जिसमें एक बार किया निवेश उसे कभी पतन की और नहीं जाने देगा. वरन  पीढ़ियों तक उसे बचत खाते की तरह परिवार को ब्याज में संस्कार देता रहेगा. यदि वो 10 मिनट भी अपने ग्रंथो वेद उपनिषद में देगा तो उसके संस्कार जाग उठेंगे.

आर्य समाज की किसी धर्म-मत से लड़ाई नहीं है बस यह तो हजारों साल के पाखंड, कुरीतियों और कुप्रथाओं से लड़ रहा है, जिसमें यह रक्त रंजित भी हुआ कभी स्वामी दयानन्द के रूप में, कभी श्रद्धानन्द जी रूप में, कभी पंडित लेखराम के रूप में. अब आर्य समाज पुनः अंगड़ाई ले चुका है, एक बार आना 2017 के विश्व पुस्तक मेले में देखना सभी धर्मों ,पंथों और मत-मतान्तरों के विभिन्न स्टाल लगे मिलेंगे. इसाई समाज बाइबिल को लेकर इस्लामिक समाज कुरान के प्रचार में कोई आसाराम को निर्दोष बताता मिलेगा तो कोई राधे माँ का गुणगान करता दिख जायेगा. ओशो का अश्लील साहित्य बिकता मिलेगा. हिंदी साहित्य हाल में केवल और केवल आर्यसमाज ही राष्ट्रवादी, समाज सुधारक, नवचेतना, सदाचारी, पाखंडों से मुक्ति दिलाने वाला, विधर्मियों के जाल से बचाने वाला साहित्य वितरित करता दिखेगा.


हर वर्ष देश विदेश से हजारों की संख्या में प्रकाशन धार्मिक संस्था पुस्तकों के माध्यम से अपनी संस्कृति का प्रचार करने यहाँ आते है, निशुल्क कुरान और बाइबिल यह बांटी जाती है. चुपचाप धर्मांतरण के जाल यहाँ बिछाये जाते है. हमारी संस्कृति पर हमला किया जाता है उस समय जब लोग धर्मनिरपेक्षता की आड़ में हमारे वैदिक धर्म को नीचा दिखाने की नाकाम कोशिश करते है तब आर्य समाज क्या करे? उस समय जिस हिन्दू के हाथ में सत्यार्थ प्रकाश होता है वो ही विजयी होता है. जिसके पास नहीं होता वो हार जाता है. अब तो सब समझ गये होंगे कि आर्य समाज का पुस्तक मेले में जाना कोई व्यापारिक प्रयोजन नहीं है बल्कि अपनी महान वैदिक सभ्यता का पहरेदार बनकर जाता है. 50 रूपये की कीमत का सत्यार्थ प्रकाश दानी महानुभाओं के सहयोग से 10 रूपये में उपलब्ध कार्य जाता है. गत वर्ष  हिंदी भाषा में सत्यार्थ प्रकाश ने समूचे मेले में सभी भाषाओं में विक्री होने वाली किसी एक पुस्तक की सर्वाधिक विक्री का रिकॉर्ड स्थापित किया था. उर्दू, अंग्रेजी वा अन्य भाषाओं में सत्यार्थ प्रकाश की विक्री इसके अतिरिक्त रही और विशेष बात यह है कि सत्यार्थ प्रकाश की यह प्रतियां मुस्लिम सहित मुख्यतः गैर आर्य समाजियों के घरों में गई. इस बार फिर आप सभी से निवेदन है आपको आमन्त्रण है आओ आर्य समाज के साथ इस राष्ट्र निर्माण के यज्ञ में अपने कीमती समय की आहुति देवें...राजीव चौधरी 

3 comments:

  1. आप बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे है। बहुत धन्यवाद ।

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  2. Sir i read this book many time in childhood because at that time this is the part of syallabus in my school dayanand public high school.This is very interesting book.

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  3. Sir i read this book many time in childhood because at that time this is the part of syallabus in my school dayanand public high school.This is very interesting book.

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