Thursday 15 September 2016

जिन्दा माँ पर कर दिया..श्राद्ध

रोहन बाज़ार में मिठाई की दूकान से गुज़र रहा था तभी उसे उसका एक दोस्त मिला ! तो उसने अपने दोस्त से पूछा क्या चल रहा है आज कल...
दोस्त ने कहा कुछ नहीं बस माँ का श्राद्ध है तो मिठाई लेने आया था ! रोहन ने कहा पागल माँ तो अभी मुझे बाजार में मिली थी और तुम ऐसी बात कर रहे हो शर्म नहीं आती क्या तुम्हे?
दोस्त ने मुस्कुराते हुए कहा... देखो लोग माँ बाप के मरने के बाद श्राद्ध करते है ! पर जब माँ बाप जिंदा होते है तो उन्हें खून के आंसू रुलाते है...!
मेरी माँ जिंदा है तो उनकी सब पसंद की हर चीज़ में मेरे घर में रखता हूँ  क्योंकि मैं उनकी हर कामना जो पूरी करना चाहता हूँ. उनके मरने के बार श्राद्ध से क्या वो संतुष्ट होंगी. जब उनके ज़िंदा रहते हुए मैंने उनके लिए कुछ ना क्या होंगा तो? मेरा मानना  है कि जीते जी माता पिता को हर हाल में खुश रखना ही उनका सच्चा श्राद्ध है!
 उसने आगे कहा कि मेरी माँ को मिठाई में लड्डू, फलों में आम आदि पसंद है ! में वह सब उन्हें खिलाता हूँ ! 
लोग मंदिरों में जाकर अगरबत्तियां लगाते है में न मंदिर जाता हूँ और न अगरबत्तियां जलाता हूँ, हाँ माँ के सो जाने पर उनके कमरे में मच्छर भागने की अगरबत्ती अवश्य जला देता हूँ !
जब माँ सुबह उठती है तब उनका चश्मा साफ़ करके उन्हें दे देता हूँ, मुझे लगता है कि ईश्वर की फोटो, तस्वीर साफ़ करने से ज्यादा पुण्य माँ का चश्मा साफ़ करने में मिलता है !
वह कुछ और कहता इससे पहले ही उसकी माँ हाथ में झोला लिए स्वयं वहां आ पहुंची तब उसने अपनी माँ के कंधे पर हाथ रखते हुए हंसकर कहा – ‘भाई बात यह है कि मृत्यु के बाद गाय-कौवे की थाली में लड्डू रखने से अच्छा है कि माँ की थाली में लड्डू परोस कर उसे जीते जी तृप्त करूँ ! यह बात श्रद्धालुओं को चुभ सकती है पर बात खरी है ! हम बुजुर्गों के मरने के बाद उनका श्राद्ध करते है ! पंडितों को खीर पुड़ी खिलाते है ! रस्मों के चलते हम यह सब कर लेते है, पर याद रखिये कि गाय-कौवों को खिलाया हुआ ऊपर पहुंचता है या नहीं, यह किसे पता? पर माता-पिता की सेवा का फल जरुर मिलता यह सबको पता है...आर्य समाज (दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा) 

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