विश्व में विभिन्न शासन पद्धतियाँ चल
रही हैं. सब
प्रकार की विधियों को अपने-अपने देश में उत्तम माना जाता है किन्तु फिर भी विश्व
में कहीं शान्ति नहीं है. कहीं
न कहीं , किसी न किसी प्रकार इन सब प्रकार की शासन पद्धतियों का विरोध हो रहा
है तथा इसमें परिवर्तन के लिए विद्रोह की आवाजें, विद्रोह
के स्वर आज अनेक देशों में सुनने को मिल रहे हैं. आजकल प्रचलित इन शासन पद्धतियों में एकतंत्र शासन पद्धति, सीमित
एकतंत्र शासन पद्धति, प्रजातंत्र शासन पद्धति, गणतंत्र
शासन पद्धति आदि प्रमुख रूप से मिलती हैं. इन में से किस प्रकार की शासन पद्धति को सर्वोत्तम माना जावे,
इसका परिक्षण करने के लिए हमें वेद की शरण में जाना होता है, क्योंकि
वेद ही विश्व में एकमात्र एसा ग्रन्थ है, जिससे न केवल
विश्व की सब समस्याओं का समाधान मिलता है अपितु सत्य-पथ के दर्शन भी होते हैं.
राजा प्रजा की
दया तक
जब हम वेद के पन्नों का अवलोकन करते हैं
तो हम पाते हैं कि वेद अपने राजा के निर्वाचन का आदेश देता है. इस प्रकार की
स्पष्ट घोषणा यजुर्वेद के अध्याय २० के मन्त्र संख्या ९ में इस प्रकार की गयी है-:
“विशी राजा
प्रतिष्ठिता”
१ राजा की सता
प्रजा की इच्छा तक
इसका
भाव यह है कि राजा की प्रतिष्ठा व स्थिति अर्थात् राजा को सम्मान व उस की सत्ता तब
तक ही रह सकती है, जब तक उस राजा की प्रजा उसे पसंद करती है. भाव यह कि प्रजा
की इच्छा पर ही राजा का स्वामित्व अथवा उसकी सत्ता निर्भर है. प्रजा की
प्रसन्नता राजा के कार्यों पर ही निर्भर करती है. यदि राजा अपनी प्रजा की सुख
सुविधाओं को बढाने की व्यवस्था का प्रयत्न करता रहता है तो प्रजा उसको राजा के पद
पर बनाए रखती है किन्तु ज्यों ही राजा निरंकुश होता है त्यों ही प्रजा उससे रुष्ट
हो जाती है इसका भाव यह है कि राजा की
प्रतिष्ठा व स्थिति अर्थात् राजा को सम्मान व उस की सत्ता तब तक ही रह सकती है,
जब तक उस राजा की प्रजा उसे पसंद करती है. भाव यह कि प्रजा
की इच्छा पर ही राजा का स्वामित्व अथवा उसकी सत्ता निर्भर है. प्रजा की
प्रसन्नता राजा के कार्यों पर ही निर्भर करती है. यदि राजा अपनी प्रजा की सुख सुविधाओं को बढाने की व्यवस्था का
प्रयत्न करता रहता है तो प्रजा उसको राजा के पद पर बनाए रखती है किन्तु ज्यों ही
राजा निरंकुश होता है त्यों ही प्रजा उससे रुष्ट हो जाती है तथा यह प्रजा स्वयं को
राजा की निरंकुशता से बचाने के लिए उसे राजा के पद से हटा देती है. इस प्रकार की
ही व्यवस्था ऋग्वेद में भी दी गयी है. यथा:
आ त्वाहार्षमन्तरेधि ध्रुवस्तिष्ठाविचाचलि: |
विशस्त्वा सर्वा
वान्छन्तु माँ त्वद्राष्टमधि भ्रशत ||ऋग्वेद १०.१..१७३||
इस
मन्त्र में पुरोहित को प्रजा का प्रतिनिधि कहा गया है तथा यह पुरोहित प्रजा का
प्रतिनिधि होने के नाते राजा का राज्याभिषेक करता है. इस अवसर पर
पुरोहित ऋग्वेद का यह मन्त्र ही उच्चारण करता है. इस मन्त्र के माध्यम से
राजा को राज्याभिषेक के समय ही सावधान करता है कि हे राजन्! आज मैं तेरा
राज्याभिषेक प्रजा के प्रतिनिधि के नाते कर रहा हूँ और तूं तब तक ही इस पद पर
रहेगा, जब तक प्रजा का तेरे लिए विशवास बना हुआ है. ज्यों ही तूं
प्रजा के विश्वास को तोड़ेगा त्यों ही प्रजा तुझे इस पद से हटा देगी. आओं मन्त्र का
अवलोकन करें :-
प्रजा का
प्रतिनिधि पुरोहित
मन्त्र कह
रहा है कि पुरोहित सदा प्रजा का प्रतिनिधि होता है. यह प्रातिनिधि
स्वरूप पुरोहित प्रजा के ही आदेश पर, प्रजा के ही द्वारा चुने गए अपने
प्रतिनिधि को सिंहासनारूढ़ करने का कार्य करता है. इस प्रकार वह जो कार्य कर रहा होता है, प्रजा के
प्रतिनिधि के रूप में ही करता है अर्थात् वह राजा का जो राजतिलक करने जा रहा होता
है तथा करता है, वह कार्य प्रजा की आज्ञा को, प्रजा
के निर्णय को मानो पूर्ण करने के लिए ही कर रहा होता है. यह हमारी
प्राचीन वैदिक व्यवस्था थी.
यदि हम आज के युग पर प्रकाश डालें तो हम पाते हैं कि आज प्रजा हमारी वैदिक प्रथा
के ही अनुरूप हमारे बनाए गए संविधान के अनुरूप अपने जिन प्रतिनिधियों का चुनाव
शासन चलाने के लिए कराती है, हमारा आज का राष्ट्रपति पुरोहित स्वरूप
उन जन-भावनाओं का आदर करते हुए उन प्रतिनिधियों का राज्याभिषेक करता है तथा उन्हें
सिंहासन की चाबी थमाने के लिए एक शपथ ग्रहण समारोह करता है तथा प्रधान मंत्री,
जिसे हम राजा कह सकते हैं तथा उनकी मंत्रिमंडल, जिसे
हम व्यवस्था का भाग मान सकते हैं को सोगन्ध दिलाते हैं अर्थात् उनका राजतिलक करते
हैं. इस
प्रकार हमारी वैदिक परंपरा के अनुसार आज भी राजा को सिंहासनारूढ़ करने के लिए
पुरोहित स्वरूप राजतिलक का कार्य किया जाता है.
२ पुरोहित ही
चुनाव अधिकारी
यह सब करते हुए हमारे इस वेद मन्त्र के
अनुसार पुरोहित नवनिर्वाचित राजा को संबोधित करते हुए कहता है कि हे राजन्! मैं
तुझे प्रजा से चुनकर लाया हूँ अर्थात् इससे पूर्व इस पुरोहित ने चुनाव आयोग का
कार्य करते हुए चुनाव की घोषणा की तथा फिर चुनाव हुए और मतदान के परिणाम स्वरूप उस
राजा को प्रजा ने चुना.
इसलिए ही पुरोहित चुनाव आयोग के प्रतिनिधि स्वरूप आज का राष्ट्रपति के रूप में
कार्य करते हुए अब शपथ ग्रहण समारोह में उस राजा का राज्याभिषेक करते हुए उपदेश
करते हुए चुने गए इस प्रतिनिधि को कह रहा है कि मैं तुझे इस प्रजा के प्रतिनिधि
स्वरूप चुनकर लाया हूँ.
इसलिए अब तूं इस योग्य हो गया है कि इस देश की राजसत्ता को संभाल सके. अत: आज मैं तुझे
राजा बनाता हूँ
तथा यह आशा करता
हूँ कि जब तक तूं इस कार्य के लिए अधिग्रहित किया गया है, तब तक
निरंतर जनहित के कार्य करता रहेगा, जनकल्याण के कार्य करता रहेगा.
३ जनता का
विशवास बनाए रखना
हे राजन्! आज तुझे जो सत्ता सौंपी जा रही है,
जनता ने जो तेरे ऊपर विशवास स्थापित किया है, तूं उस
विशवास पर खरा उतरने क लिए निरंतर स्थिर रहते हुए बड़ी मजबूती से अपने कर्तव्यों को
पूर्ण करना.
कभी कर्तव्य से विमुख न होना. जनसेवा
के कार्य कार्य करते हुए कभी विचलित न होना, कभी
दुरूखी न होना. यह
तेरा मुख्य कर्तव्य है, यह तेरा मुख्य कार्य है, इसे करने
में सदा दिन-रात एक कर देना.
४ जनता सदा तेरे
ही जयघोष लगावे
हे
राजन्! तूं एसे कार्य कर कि सारी प्रजा तेरे यश के गान गावें. अपने बच्चों को
तेरे जीवन की गाथाएँ सुनावें तथा उन्हें तेरे जैसा ही बनने के लिए प्रेरित करें. प्रजा तेरे
गुणों का सदा गान करती रहे, वह तेरी लम्बी व दीर्घायु की सदा कामना
कराती रहे तथा लम्बे समय तक तेरी सत्ता में अपना जीवन व्यतीत करने की इच्छा करे. वह तेरी
अनुगामी रहते हुए सदा तेरे से मार्गदर्शन पाने की इच्छा रखे. तूं इस प्रकार
के कार्य कर, इस प्रकार का शौर्य दिखा कि जनता तेरे कार्यों
में ही अपना हित समझे तथा सदा तेरी छात्रछाया में ही रहना पसंद करे. सदा तेरे ही
जयघोष लगाती रहे.
५ सदा उतम कार्य
करना
हे राजन्! कभी कोई इस प्रकार का कार्य न करना
कि जिसके कारण तेरी सत्ता छिन सकती हो. अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए सदा उत्तम कार्य करना, प्रजा
का विशवासपात्र बने रहना.
६ प्रजा कभी भी
उसे हटा सकती है
इन तथ्यों से यह बात स्पष्ट ध्वनित हो रही है
कि राजा तब तक ही सत्ता का स्वामी
रह सकता है, जब तक प्रजा की दया उस पर बनी हुई है. यदि प्रजा की
दया का हाथ उससे उठ जाता है तो फिर वह कितने भी यत्न कर के भी सत्ता का स्वामी
नहीं रह सकता.
जनता उसे किसी भी समय कान पकड़ कर सत्ता से विमुख कर सकती है. राजगद्दी से
हटा सकती है, उसे पद्च्युत कर सकती है.
डा.अशोक आर्य
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