विधुं दद्राणं समने बहूनां युवानं सन्त पलितो जगार। देवस्य पश्य काव्य
महित्वाद्या ममार स ह्य समान।। -). 10/55/5ऋ साम. उ. 9/1/7 अथर्व. 9/109
विनय : हे मनुष्यों! यह आश्चर्य देखो कि जवान को बुड्ढ़ा निगल जाता है। उस
पराक्रमी जवान को, जोकि
रणस्थली में बहुतां को मार भगाने वाला है, जो बड़े-बड़े-विविध कर्म करने वाला है, ऐसे जवान को एक न जाने कब का बुड्ढा, सफेद बालों वाला बुड्ढा निगल जात है।
मनुष्यो! तुमने बेशक बहुत-से मनुष्यकृत तिबी और काल्पनिक काव्य पढ़े होंगे, पर आज तनिक इस जीते-जागते सामने होते
हुए देव के महान् काव्य को भी देखो, तरिम इस महाकाव्य के भी पन्ने पलटो और
पढ़ो जिसमें लिखा है कि ‘‘जो अभी कल
जी रहा था वह आज मरा पड़ा है।’’ बस, इस दिव्य महाकाव्य में यही लिखा हुआ
है।
भाई! क्या तुमने उस जवान को निगलनेवाले बुड्ढ़े को पहचाना? क्या तुम अपनी आंखों के सामने इस
दिव्य-काव्य को नहीं देख रहे? क्या
देखते हो कि दुनिया में प्रतिदिन जो हज़ारों ;एक क्षण पहले तग दूसरों को मार भगाने
की शक्ति का गर्व रखते हुएद्ध आदमी मर रहे हैं, उन्हें कौन निगल रहा है? यदि नहीं देखते, तो वेद की किताब में यह पढ़ लेने पर कि
आत्मा अपने में प्राणों और इन्द्रियों को प्रतिदिन निगलता है, आदित्य शक्ति‘चन्द्रमस्’ को निगलती है और परम बुढ्डा कालरूप
परमेश्वर एक दिन इस सब बड़े वेग से क्रियाशील, अगम, महान् ब्रह्माण्ड को ;इस चलते-फिरते नौजवान संसार कोद्ध भी
निगल लेताहै, तो यह पढ़
लेने पर भी नहीं देखोगे, यदि
तुम्हें यह सहस्रों चतुर्युगियों वाला कल्पान्त संसार ब्रह्मा का केवल एक दिन नहीं
नज़र आता जोकि उसके अगले ही दिन-उसके ‘कल’ में ही-मरा पड़ा है और यदि तुम्हें इस
जगत् की एक-एक घटना इसकी क्षणभंगुरता को नहीं दिखाती, तो तुम्हें वह देव ही एक दिन अपना
महत्त्वशाली काव्य पढ़ाएगा और तुम्हें पदार्थ-पाठ देगा-‘‘कल जो जीता था वह आज मरा पड़ा है।’’
भाई! देव के इस संसार में आकर यदि हम केवल इस ‘अन्त्यिता’ को ही सचमुच जान जाएं, केवल यह पाठ पढ़ लें और अतएव कम-सेकम
अपने बल का, नौजवानी
का, कर्म-शक्तिका
और दूसरों को मार भगा सकने का घमण्ड छोड़ दें तो बस, यह पर्याप्त है, तब हमने सब काव्य पढ़ लिये और पढ़ाई का
फल पा लिया।
शब्दार्थ-युवानं सन्तम् = एक ऐसे नौजवान को विधुम् = जोकि विविध काम करने
वाल है और समने =रण में बहूनाम् = बहुतों को दद्राणम् =मार भगानेवाला है उसे पलितः
= एक बुड्ढ़ा जगार = निगल जाता है। देवस्य = दे के महित्वा = इस बड़े महत्त्ववाले
काव्यम् = काव्य को पश्य = देख कि ह्यःसम्-आन = कल जो जी रहा था, सांस ले रहा था, सः =वही अद्य = आज ममार = मरा पड़ा है।
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