माता
रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभिः।
प्र नु
वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट।। -). 8/101/15
विनय- हे
मनुष्य! तू गौ को कभी मत मार। तू चेतनावाला है, तुझे परमात्मा ने कुछ समझ, अक्ल, है। इसलिए तुझे कहता हूं-तू
गो-घात कभी मत करना! तू अपनी समझ का तनिक-सा उपयोग करेगा तो तुझे पता लग जाएगा कि
यह गौ यद्यपि बड़ी भोली, बेचारी, बिलकुल निर्दोष है, इसलिए इसे कोई भी कभी मार सकता है, मारने से यह मर जाएगी, कोई प्रतिरोध न करेगी, परन्तु साथ ही यह इतनी महत्त्वशालिनी
है, सब देवों
की सम्बन्धिनी और अमरपन का एक केन्द्र है कि इसका मारना अपना नाश करना है, इसका घात करना आत्मघात है।
यह गौ कहीं
और नहीं, हमारे ही
अन्दर है। यह ‘अदिति’ आत्म-शक्ति है, वाणी है, अन्तरात्मा की वाणी है, अन्दर की आवाज है। तुम इसे दबाओगे तो
यह चुपचाप दब तो जाएगी, परन्तु
इससे तुम्हारा आत्मा नष्ट हो जाएगा। यह ‘अदिति’ वाणी ;यह आदित्यों की बहिनद्ध वसुओं-आत्मा की
वासक अग्नियों-से प्रकट होती है ;इनकी
पुत्री हैद्ध और मनुष्य के सब रुद्रों-प्राणों-की और सब चेष्टाओं की माता है। यह
ऐसी अमृत वस्तु है कि इसे मारने का यत्न करने वाला स्वयं मर जाता है और इसकी रक्षा
करने वाला सुरक्षित रहता है। इसी अन्दर की ‘गौ’ की प्रतिनिधि आधिदैविक में भूमि है, आधिभौतिक में राष्ट्रदेवी है और पशुओं
में गौ मात है। हे चेतनावाले मनुष्य! तू समझ कि इन गौओं का भी घात कितना भयंकर
परिणाम लानेवाला है। भूमि, राष्ट्र
और गौओं की रक्षा करने में ही मनुष्यों की, मुनष्य-जाति की रक्षा हे। देखना, इस भूमि-गौ की, इस राष्ट्र-गौ की तथा इस गौ-पशु की
तनिक भी हिंसा करने वाला कर्म तुझसे न हो। जब कभी इन सर्वथा अप्रतिरोधिनी गौओं की
हिंसा करने का प्रलोभन आये तो याद कर लेना कि ये सब अमृत की नाभियां हैं और
अपने-अपने क्षेत्र के आदित्यों, वसुओं और
रुद्रों से सम्बन्धित दिव्य शक्तियां हैं। इनको मारकर तू कभी फूल-फल नहीं सकता, परन्तु अन्त में सब बाह्य गौओं की गौ
तो अन्तरात्मा की वाणी है। इस गौ को तो कभी मत छेड़ना, उस सदा पालना, पोसना और इसकी आज्ञा को सदा मानना।
अपना सर्वस्व स्वाहा करके भी इस गौ की रक्षा करना। इसे तनिक भी नहीं दबाना। यदि इस
अमृतनाभि ‘अदिति’ गौ का रक्षण, पोषण और वृ( होती गई तो तू भी एक दिन
अमृत हो जाएगा, देवों का
राज्य पा जाएगा। देखना, इस सर्वथा
अप्रतिरोधिनी परम शान्त गौ का तेरे यहां तनिक भी तिरस्कार न होने पाये, इसे तनिक भी क्षति न पहुंचने पाये।
शब्दार्थ-मैं
चिकितुषे जनाय = प्रत्येक चेतनावाले मनुष्य को नु प्रवोचम् = कहे देता हूं कि
अनागाम् = निरपराध अदितिम् = अहन्तव्या गाम् = गौ को मा वधिष्ट = कभी मत मार, क्योंकि यह रुद्राणां माता =रुद्रदेवों
की माता है, वसूनां
दुहिता = वसु देवों की कन्या है और आदित्यानां स्वसा = आदित्यदेवों की बहिन है तथा
अमृतस्य नाभिः = अमरपन का केन्द्र है।
साभार :
वैदिक विनय
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