भारतीय अंतरिक्ष
अनुसंधान संगठन (इसरो) प्रमुख ए. एस. किरण कुमार ने वैज्ञानिक
दृष्टिकोण के लिहाज से प्राचीन भारतीय ग्रंथों की सराहना की है। उन्होंने देश के गौरव के उसके गरिमामयी इतिहास से जुड़े होने पर जोर
देते हुए कहा कि प्राचीन ग्रंथों की उपेक्षा
नहीं होनी चाहिए।
कुमार ने कहा कि जिस विज्ञान को आज जाना जाता है वह तुलनात्मक रुप से आधुनिक
मूल का है, लेकिन यह
जिस परंपरा से निकला है वह मौजूदा इतिहास से कहीं पहले का है।
उन्होंने कहा, 'यह कई सदियों में विकसित हुआ है और इसकी
व्याख्या सुपरिचित और सुपरिभाषित कदमों के
संदर्भ में की जाती है।'
मनिपाल विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में पहुंचे इसरो प्रमुख ने कहा,
'जीवन और अस्तित्व
के मूलभूत मुद्दों का निदान करने वाले व्यापक तौर पर स्वीकार्य वैज्ञानिक सिद्धांत, खोज और अविष्कार आधुनिक वैज्ञानिक
व्याख्याओं के आधार बनते हैं। वैदिक
और आधुनिक यूनानी लेखनी प्राचीन ज्ञान के सार हैं। उपनिषद, भगवद्गीता,
ब्राह्मण सूत्र, श्रीमद्भागवत और महाभारत प्राचीन ज्ञान
का स्रोत हैं।'
उन्होंने
चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल प्राइज विजेता और चीनी वैज्ञानिक तु-यूयू का हवाला देते हुए कहा कि ऐंटी मलेरियल ड्रग विकसित करने में
मिली असाधारण सफलता के लिए 1500 साल
पुराने चीनी लेखों से ही उन्हें मदद मिली थी।
इसके अलावा उन्होंने यह भी बताया कि करीब 18,000 पुराने
लेखों के अध्ययन के बाद शोधकर्ताओं ने पाया कि
विभिन्न तरह के दर्द जिसमें कि माइग्रेन
और असह्नीय पीठ दर्द भी शामिल है, उसके इलाज में पश्चिमी चिकित्सा पद्धति की तुलना में ऐक्यूपंक्चर कहीं ज्यादा कारगर है।
इसी तरह उन्होंने भारतीय ध्यान और योग पद्धति की भी सराहना करते हुए कहा कि हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक हालिया
अध्ययन में यह निकल कर आया है कि ध्यान-योग पद्धति
किस तरह से हमारे जीन्स को प्रभावित करती है,
जिससे हमें तनाव को कम करने और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद मिलती है।
उन्होंने कहा कि
हमें अपने प्राचीन ग्रंथों की उपेक्षा
नहीं करनी चाहिए। अगर हमने इन्हें सत्यापित किया, इनका
व्यापक अध्ययन किया और सही ढंग से शोध किया
गया तो इनसे महत्वपूर्ण ज्ञान की प्राप्ति
हो सकती है।
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