वेद में माता को बहुत ही उंचा स्थान
दिया गया है. माता
को निर्माता कहा गया है. जो न केवल अपनी ही संतान का अपितु अन्यों के भी
निर्माण का बहुत ही सुन्दर कार्य करती है. इस कारण ही तो वेद में मही, ऋतावरी तथा
अदिति आदि सरीखे नाम माता के लिए दिए गए हैं. जिस प्रकार भूमि में डाला
हुआ बीज भूमि की उदारता तथा सेवा के कारण न केवल अंकुर के रूप में फूटता है बल्कि
यह भूमि के ही संस्कारों से संस्कारित हो कर निरंतर बढ़ता ही जाता है, फलता
और फूलता ही जाता है. इस
प्रकार ही माता न केवल बच्चे को जन्म ही देती है अपितु उसका पालन - पौषण अपने उतम
संस्कारों से करती है, जिस के कारण उसके सुकर्मों का यश निरंतर विश्व
में फैलता ही चला जाता है किन्तु यह सुकर्म वह तब ही कर सकता है, करने
के योग्य बन सकता है, जब उस की माता भी सुशिक्षित है. यदि माता
सुशिक्षित नहीं है, उसने वेद का सर्वांगीण ज्ञान नहीं पाया है तो
वह अपनी संतान को सुशिक्षित करने में सक्षम नहीं हो सकती. श्रेष्ठ तथा विदुषी
माता ही यह सब कर सकती है. इस
सम्बन्ध में ऋग्वेद इस प्रकार प्रकाश डाल रहा है -
अम्बितमे नदीत्मे
देवितमे सरस्वति.
अप्रशस्ता इव स्मसि प्रशस्तिमम्ब
नस्कृधि||
ऋग्वेद २.४१.१६||
माताओं में
श्रेष्ठ माता
ऋग्वेद का यह मन्त्र माता के
सम्बन्ध में प्रकाश डालते हुए हमें उपदेश कर रहा है कि हे माताओं में श्रेष्ठ माता!
, मन्त्र ने माता को माताओं में श्रेष्ठ के रूप में संबोधन किया है,
एसा क्यों? माताएं
तो सब माताएं ही होती हैं.
सब अपनी संतान को उन्नत देखना चाहती हैं, इस लिए वह अपनी
संतानों में गुणों का निरंतर आघान करती रहती हैं किन्तु केवल वह माता ही अपनी
संतान को आगे बढाने के, उन्नत बनाने के योग्य बना सकती है, जिस
के पास वेदादि ज्ञानों का भण्डार विद्यमान है. ऐसा अन्य माताएं
सत्यज्ञान देने
वाली श्रेष्ठ उपदेशिका
हे माताओं में श्रेष्ठ माता! तूं सत्यज्ञान की उपदेशिकाओं में भी श्रेष्ठ है. माता वही है,
जो निर्माण का कार्य करे. सब माताएं ही अपनी संतान का उतम विधि से निर्माण करना चाहती हैं
किन्तु केवल वह माता ही ऊपर बताए अनुसार श्रेष्ठ संतान का निर्माण करने के लिए
श्रेष्ठ संस्कार अपनी संतान को दे सकती हैं जिनके पास वेद के ज्ञान का भण्डार है,
अन्य नहीं. जिस माता ने वेद के उतम ज्ञान का भण्डार अपनी
बुद्धि में भर रखा होता है, वह ही अपनी संतानों के लिए श्रेष्ठ
उपदेशिका हो सकती है, वह ही अपनी संतानों के लिए न केवल श्रेष्ठ
उपदेशिका होती है अपितु सत्यज्ञान देने वाली श्रेष्ठ उपदेशिका बन सकती है. इस लिए मन्त्र माता के लिए सत्यज्ञान देने वाली
श्रेष्ठ उपदेशिका होना आवश्यक मानते हुए उसके लिए वेद विदुषी होना नितांत आवश्यक
मानता है, इसलिए
मन्त्र के माध्यम से माता को सत्यज्ञान की उपदेशिका के रूप में सम्बोधन किया गया
है.
उन्नति के मार्ग
पर अग्रसर करें
सत्यनिष्ठा
देवियों में श्रेष्ठ
आगे माता को संबोधित करते हुए वेद ने
माता को सत्यनिष्ठा देवियों में श्रेष्ठ के रूप में सम्बोधन किया है.इस के साथ ही
आगे चलकर वेद का उपदेश करते हुए कह रहा है कि हे माते! तूं विद्यावती मातृदेवी है. विद्यावती
मातृदेवी होने के कारण तेरे में सब
विद्याओं का ज्ञान भरा हुआ है क्योंकि तूने अत्यधिक पुरुषार्थ से वेद का उतम ज्ञान
प्राप्त किया है. इसलिए
हे माते! तूं अपने इस अर्जित ज्ञान के भण्डार को हम सब
में बाँटते हुए हमारे अन्दर जो अनेक प्रकार के दुर्गुण भरे हुए है, हमारे
अन्दर जो अनेक प्रकार के दोष भरे हुए हैं, हमारे अन्दर जो
अनेक प्रकार के विकार भरे हुए है, इन सब दोषों , विकारों
के कारण हम अप्रशस्त हो गए हैं, हम उन्नति के प्रशस्त पथ पर आगे बढ़ने
के योग्य नहीं रह गए हैं. हे माते !
ऐसा उपाय करो, हमें एसा ज्ञान का प्रकाश करो कि हमारे जितने
भी दुर्गुण है, हमारे अन्दर जीतनी भी व्याधियां भरी है,
हमारे अन्दर जितने भी दोष हैं, वह सब
आपके वैदिक ज्ञान के प्रकाश से दूर हो जावें.
आप के उतम उपदेश
माता वेद ज्ञान
की विदुषी हो
इस प्रकार मन्त्र यह स्पष्ट उपदेश कर
रहा है कि माता का विदुषी होना आवश्यक है. माता के पास वेद का ज्ञान होना आवश्यक
होता है. वेद का ज्ञान ही उन्नति का मार्ग है. वेद का ज्ञान
ही किसी भी व्यक्ति को आगे ले जा सकता है. यदि माता निरंतर स्वाध्याय करने में
रूचि रखती है तो उस में इतनी शक्ति आ जाती है कि वह वेद के गूढ़ रहस्यों को भी
सरलता से आत्मसात् कर लेती है. यह जो वेद
के उच्च विचार माता ने आत्मसात् कर रखे होते हैं, जब वह इन
विचारों को बांटने के लिए अपनी संतानों के सामने बैठती है , उन्हें
यह सब उतम तथा सत्य ज्ञान का उपदेश करती है तो उन संतानों के अन्दर से सब बुरे
विचार, सब दोष , सब विकार निकल जाते हैं तथा उन सब का स्थान
लेते हैं वेद के उतम उपदेशों से माता के माध्यम से प्राप्त हुए ज्ञान का भण्डार. जब बालक को इस प्रकार के उतम ज्ञान प्राप्त
होते हैं तो निश्चय ही वह उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ता है. इसलिए ही वेद ने उपदेश
करते हुए कहा है कि माता के लिए वेद ज्ञान की विदुषी होना चाहिए.
डॉ अशोक आर्य
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