ऐ मेरे वतन के लोगो, जरा
याद करो इन आर्य समाजियों की कुर्बानी
संसार
के सम्मानित राष्ट्रों का इतिहास उन व्यक्तियों के चरित्रों से सदा भरपूर रहा है,
जिन्होंने
उच्च एवं पवित्र उद्देष्यों की पूर्ति के लिए महान् से महान् त्याग किया और समय
पड़ने पर इस संघर्ष में अपने जीवन को न्योछावर कर दिया और पीछे बलिदानों के अवषेश
रख गए, जो अनुगामियों का पथ प्रदर्शन कर सकते हैं
शहीदों को मृत्यु कभी स्पर्श नहीं करती
अपितु वे स्वयं मर कर अमर हो जाते हैं। इतिहास साक्षी है। ऐसी महान् आत्माओं का
रक्त कदापि व्यर्थ नहीं गया अपितु समय आने पर एक ऐसे प्रखर प्रचंड रूप में
प्रवाहित हो निकला जिसमें हिंसा, अत्याचार और पाशविकता के दल स्वतः
निमग्न हो गए। ये व्यक्ति धर्म-प्रचार, सदुपदेश, प्रजावाद की
प्रस्थापना, शांति और प्रेम एवं सत्य को साधारण व्यक्तियों
तक पहुंचाने के लिये अपने जीवन-लक्ष्य की कठिनाईयों को पार कर आगे बढ़ते ही रहे।
इन्होंने सदा पराक्रान्तों का साथ दिया और मानवता के उच्च आदर्शो के रक्षक हुए और
इन हेतुओं से निज तन-मन-धन की बलि देकर स्पष्ट कर दिया कि इनका सेवा कार्य में
कितना उत्साह था तथा बलिवेदी से कितना ऊंचा प्रेम था।
आर्य समाज के शहीद मरने के बाद अमर हो गये और
इन हुतात्माओं के रक्त से हैदराबाद में वैदिक धर्म का जो चमन सींचा गया, वह
अब एक विस्तृत उद्यान बन गया है और रियासत में वैदिक धर्म का नव सन्देश दे रहा है।
यहां हम कुछ आर्य समाजी शहीदों का संक्षिप्त परिचय दे रहे हैं जो वर्तमान में
संसार में उपस्थित तो नहीं हैं पर वे सबके ह्रदयों में स्मरण रहेंगे और ऐसा प्रतीत होता है कि हम
इन्हें कभी भूल नहीं सकेंगे।
1. वेद प्रकाश जी
वेद
प्रकाष जी का पूर्व नाम दासप्पा था। दासप्पा संवत् 1827 में गुजोटी में
पैदा हुए। इनकी माता का नाम रेवती बाई और पिताश्री का नाम रामप्पा था। गरीब
माता-पिता को इसकी क्या सूचना थी कि उनका बेटा बड़ा होकर हुतात्मा बनेगा और वैदिक
धर्म के मार्गं में शहीद होकर अमर हो जाएगा। दासप्पा ने मराठी माध्यम से आठवीं
श्रेणी तक षिक्षा ग्रहण की। जैसे-जैसे ये बढ़ते गये वैसे-वैसे वे धर्म की ओर आकर्षित
होते गये। वे आर्य समाज के सत्संगों में बराबर सम्मिलित होते थे। वैदिक धर्म के आकर्षण
ने इन्हें महर्शि दयानन्द का पक्का भक्त बना दिया। आर्य समाजी बनने के बाद यह वेद
प्रकाश कहलाने लगे थे। इनका आर्य समाज में असाधारण प्रेम एवं निश्ठा के ही कारण
गुंजोटी में आर्य समाज की नींव डाली गयी पर स्थानीय इर्स्यालू यवन इन्हें देखकर
जलने लगे थे। वेद प्रकाश जी सुगठित शरीर एवं सद्गुण रखते थे और लाठी-तलवार चलाने
की विद्या में पर्याप्त दक्ष थे। इनकी यह दक्षता कई भयंकर संकटों के समय इनकी
सहायक सि( हुई। कई बार विरोधी दल ने इन पर आक्रमण किये और ये अपने आपको सुरक्षित
रखने में सफल हुए।
गुंजोटी
का छोटे खां नाम का एक पठान स्त्रियों को गलत निगाहों से देखता था। एक दिन वेद
प्रकाश जी ने इसे ऐसा करने से रोका और
सावधान किया कि भविष्य में इस प्रकार कुद्रष्टि मातसमाज पर न डालें। यह बात
गुण्डों को हृदयग्राही न थी और सब इनके शत्रु हो गए। वेद प्रकाश जी ने गुंजोटी में
हिन्दुओं के लिये पान की एक दुकान खोल दी और चांद खान पान का एक व्यापारीद्ध इनका शत्रु
हो गया और भीतर ही भीतर इनके विरुद्ध षड्यंत्र
रचने लगा। एक
दिन यवनों ने स्थानीय आर्य समाज के मन्त्री के मकान पर अकस्मात् धावा बोल दिया, इसकी सूचना वेद प्रकाश जी को मिली,
वे
इन आक्रमणकारियों को रोकने के लिए निःशस्त्र ही चले गये। मन्त्री के मकान के समीप
दो-तीन मुसलमानों ने इन्हें पकड़ लिया और आठ-नौ व्यक्तियों ने इन्हें नीचे गिरा कर
हत्या कर दी। विषेश उल्लेखनीय बात यह है कि उस दिन पुलिस ने वहां के प्रतिष्ठित हिन्दुओं
को थाने में बुलाकर बैठा रखा था। आक्रमकत्र्ताओं और हत्यारों को पहचान लिया गया और
न्यायालय में गवाह भी उपस्थित किये, पर फिर भी हत्यारों को निर्दोश घोषित कर
दिया गया। वेद प्रकाश जी का रक्त हैदराबाद में पहला रक्त था जो बड़ी निर्दयता के साथ
बहाया गया था और इसके बाद वीर आर्यों के बलिदानों का एक सिलसिला सा चल पड़ा।
2. धर्म प्रकाश जी
धर्म
प्रकाश जी का पूर्व नाम नागप्पा था। नागप्पा जी का जन्म कल्याणी में संवत् 1839
में हुआ था। इनके पिताश्री का नाम सायन्ना था। इनका पदार्पण जब आर्य समाज में हुआ
तब से ये धर्म प्रकाश कहलाने लगे। कल्याणी
एक मुस्लिम नवाब की जागीर थी। वहां मुसलमानों का अत्याचार नंग-नाच कर रहा था। मुसलमानो
के अत्याचारों को देखकर धर्म प्रकाश इसकी रोक-थाम की तैयारी में लग गये। हिन्दुओं
को शस्त्र विद्या सिखाने लगे। कल्याणी के मुसलमान हिन्दुओं के शारीरिक अभ्यास से रुस्ठ
हो गये और उन्होंने इनकी हत्या करने की कमर कस ली। कल्याणी के इस धर्मवीर पर कई
बार आक्रमण किये गये पर आक्रमकारियों को सफलता नहीं मिली। कल्याणी
के खाकसार इनकी हत्या की ताक में रहने लगे। 27 जून 1837 ई.
की रात को धर्म प्रकाश आर्य समाज कल्याणी
के सत्संग से अपने घर वापस जा रहे थे कि खाकसारों ने इन्हें एक गली में घेर कर
बरछों और भालों की सहायता से मार डाला। वेद प्रकाश की हत्या से आर्य समाज में शोक व दुःख की लहर दौड़ गयी। इस हत्याकाण्ड के
हत्यारे भी न्यायालय से निर्दोष छोड़ दिये गये।
3. महादेव जी
महादेव
जी अकोलगा के रहने वाले थे। साकोल आर्य समाज के सत्संगों में जब इन्हें कई बार
सम्मिलित होने का अवसर मिला, तब वैदिक धर्म का जादू इन पर चढ़ गया।
इनके मन और मस्तिक्ष पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि आर्य समाजी बन जाने के बाद वैदिक
धर्म के प्रचार की धुन लग गयी। तरुणोत्साह और साहस इन्हें इस मार्ग पर आगे बढ़ाता
ही रहा। महादेव जी की मुखाकष्ति पर तेज था। भाषण देते समय इनके मुख से जो वाक्य
निकलते, उन्हें लोग बड़ी तन्मयता और रुचि से सुनते और एक तरुण आर्य युवक को
प्रचार के काम में इस प्रकार तल्लीन देखकर
लोगों को भी इच्छा होती थी कि वे भी इसी प्रकार बनें। महादेव जी के प्रचार का काम
जब प्रगति पर था उस समय मुसलमान इनके अकारण षत्रु बन गये। कई बार इन पर इस द्रष्टि
से आक्रमण हुए कि वे सदा के लिए मौन हो जाए पर वे बचते ही रहे।
एक
दिन की घटना है कि महादेव जी अपने प्रिय धर्म प्रचारार्थ कहीं जा रहे थे कि रास्ते
में किसी अज्ञात व्यक्ति ने पीछे से आकर छुरा घोंप दिया और 14
जुलाई 1938 के दिन यह आर्य युवक 25 वर्ष की आयु में सदा के लिए इस संसार
से बिदा हो गया।
4. श्याम लाल जी
धर्मवीर
श्याम लाल जी का जन्म 1903 ई. भालकी में हुआ था। इनके पिताश्री
का नाम भोला प्रसाद और माता का छोटूबाई था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा मराठी में हुई।
ये एक पौराणिक परिवार से थे। इनके एक मामा आर्य समाजी थे, जिनके प्रभाव से
श्याम लाल जी के ज्येश्ठ भ्राता बंसीलाल जी वैदिक धर्म के अनुयायी और स्वामी दयानन्द
के अन्तःकरण के भक्त बन गये और आर्य समाज के सर्वप्रिय नेता भी कहलाने लगे।
गुलबर्गा में आपके ही प्रयासों से आर्य समाज की स्थापना हुई। वे स्वयं इस समाज के
मन्त्री बनकर कार्य संचालन करते रहे। 1925 ई. में वकील बने और उदगीर में वकालत
करने लगे। निजी जीविकोपयोगी कार्य करते हुए आर्य समाज का प्रचार भी करते थे। 1926 ई.
में इन्हें चर्म रोग लग गया और वह इतना बढ़ा कि पूरा शरीर फूल गया। रोग निवारणार्थ
आप लाहौर गये। अभी आप लाहौर में ही थे कि 1926 ई. में स्वामी श्रद्धानन्द
जी शहीद हो गये। स्वामी जी के इस बलिदान
का प्रभाव इन पर अत्यधिक पड़ा। लाहौर से वापस आकर उदगीर में आर्य समाज की स्थापना
की और प्रतिज्ञा की कि आजीवन वैदिक धर्म का प्रचार करेंगे। उदगीर के तात्कालीन
मुसलमान तहसीलदार ने स्थानीय मुसलमानों को प्रेरित कर इनके मकान पर आक्रमण करवा
दिया, परन्तु यह आक्रमण विफल रहा। आर्य
समाज उदगीर की स्थापना के बाद आपके अथक प्रयासों से विजय दशमी के अवसर पर प्रथम
बार जुलूस निकाला गया। होली के जुलूस के अवसर पर आप पर पुनः आक्रमण हुआ पर इस बार
भी आप बच गये। श्याम लाल जी ने अछूतों के लिए एक पाठशाला, एक व्यायाम शाला
तथा एक निःशुल्क चिकित्सालय भी स्थापित किया। 1928 ई.
में उदगीर आर्य समाज का वार्षिकोत्सव हुआ और इसी के बाद पुलिस आपका पीछा करने लगी।
इसी वर्ष धारा 104 के अधीन आप पर झूठा मुकद्दमा चलाया गया और
आपसे दो हजार की जमानत और मुचलका लिया गया। श्याम लाल जी उदगीर से बाहर निकलकर
भालकी, कल्याणी, औराद, शाहजहानी, लातूर तथा औसा
आदि स्थानों पर प्रचार करने लगे। कई बार मुसलमानों ने आप पर आक्रमण किया और कई ऐसे
अवसर आये जब कि हिन्दुओं ने आपको अपने पास आश्रय देना अस्वीकार किया। आपने कई
रातें मार्ग पर चलते हुए बितायीं और दिन में फिर प्रचार कार्य किया। 1935 ई.
में माणिक नगर की यात्रा के अवसर पर मुसलमानों ने आप पर छुरा घोंप देने का प्रयत्न
किया पर एक नवयुवक बीच में आया, स्वयं जख्मी हुआ और इन्हें बचा लिया। 1938 ई.
में इन पर पुलिस ने एक झूठा मुकद्दमा चलाया और न्यायालय ने इन्हें दीर्घकालिक दण्ड
दिया। अभी आप कारावास में दंड भोग रहे थे कि आपका देहांत हो गया। पं. श्याम लाल जी
का नाम हैदराबाद आर्य समाज के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा रहेगा क्योंकि
ये अपने अथक प्रयत्नों, संघर्ष और श्रद्धा से आर्य समाज को शक्तिषाली
और विस्तृत करने की चिन्ता अन्तिम श्वास तक करते रहे।
5. व्यंकटराव जी
व्यंकटराव
जी कंधार जिला नांदेड़ के रहने वाले थे। इन्होंने स्टेट कांग्रेस द्वारा संचालित
सत्याग्रह में भाग लिया और दण्ड भोगते रहे। कारावास के अधिकारियों द्वारा मार-पीट
के कारण 18 अप्रैल 1938 ई. में आप परलोक सिधार गये।
6. विष्णु भगवान् जी
विष्णु
भगवान् जी ताण्डूर ;गुलबर्गाद्ध के रहने वाले थे। इन्होंने
गुलबर्गा में ही सत्याग्रह किया और वहीं इन्हें कारावास का दण्ड दिया गया। आपको
गुलबर्गा से औरंगाबाद और फिर हैदराबाद जेल में रखा गया और यहां दूसरे
सत्याग्रहियों के साथ इन्हें इतना पीटा गया कि ये सहन न कर सके और 2 मई
1939 ई. में आपने 30 वर्ष की आयु में अपना शरीरान्त किया।
7. माधवराव सदाशिवराव
जी
आप
लातूर के रहने वाले थे। आपने 30 वर्ष की आयु में आर्य सत्याग्रह में
भाग लिया और गुलबर्गा जेल में बन्द कर दिये गए। 26 मई 1939 ई.
के दिन कड़कती धूप में नंगे पैर जेल में कठिन परिश्रम करने से रोगग्रस्त हो गए।
चिकित्सा का कोई प्रबन्ध नहीं किया गया और आप इस प्रकार निजाम सरकार की क्रूरता के
कारण देहावसान कर गये। माधव राव सदाशिवराव के देहान्त की सूचना पाकर असंख्य
नर-नारी इनके अन्तिम दर्शन करने गए पर पुलिस ने रोक दिया और जेल में ही इनका शव अग्नि की भेंट कर
दिया गया।
8. पाण्डुरंग जी
उस्मानाबाद
के रहने वाले युवा आर्य सत्याग्रही को सत्याग्रह के कारण ही कारावास का दंड दिया
गया था। गुलबर्गा जेल में इन पर इन्फुएंजा का आक्रमण हुआ पर चिकित्सा का कोई
प्रबन्ध न किया गया। हालत चिन्ताजनक होती गई। 25 मई 1939 के
दिन इन्हें नागरिक औषधालय में भेजा गया और वहीं 27 मई को इनका
देहान्त हो गया। असंख्य नर-नारी इनके अन्तिम दर्शन को आए पर पुलिस ने इन्हें वापस
जाने पर विवश कर दिया और पुलिस द्वारा ही इनका अन्तिम संस्कार किया गया।
9. राधाकृष्ण जी
राधाकृष्ण
जी निजामाबाद के एक राजस्थानी थे। 1903 ई. में आपका जन्म हुआ था। आपके पिता
का नाम जीतमल था। 1934 ई. में आप आर्य समाजी बने और तभी से इसके
प्रचार की धुन लग गई। इन्होंने ही निजामाबाद में आर्य समाज की स्थापना की थी। इसी
कारण आप पुलिस की वक्रद्रष्टि में खटने लगे। मुहर्रम के दिनों में आप पर मुकद्दमा
चलाया गया और इनसे एक साल के लिए दो हजार रुपये का मुचलका लेकर छोड़ा गया। आर्य
सत्याग्रह के समय आप बड़े उत्साह के साथ चन्दा एकत्रित करने में जुटे थे। 2
सितम्बर 1931 ई. के दिन एक अरबी ने छुरा घोंप कर मार डाला
और यह बात सर्व विदित हो गई कि इनकी हत्या के षड्यंत्र में पुलिस का हाथ था।
10. लक्ष्मण राव जी आपने
धार्मिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए सत्याग्रह किया। जेल के कठोर व्यवहार को सहन
न कर सकने के कारण 3 अगस्त 1939 ई. को हैदराबाद
जेल में आपका देहान्त हो गया।
11. शिवचन्द्र जी
आपका
जन्म 3 मार्च 1916 ई. में दुबलगुण्डी में हुआ था। आपके
पिताश्री का नाम अन्नपक्षप्पा था। 1935 ई. में मैट्रिक परीक्षा प्रथम श्रेणी
में उत्तीर्ण की थी। सरकार की ओर से आपको छात्रवष्त्ति भी प्राप्त हुई थी। आप
हुमनाबाद की एक पाठशाला में अध्यापक हो गये थे। पाठशाला के अवकाष के समय आप आर्य समाज के साहित्य का अध्ययन किया
करते थे। आर्य समाज के लिए आपने बड़े उत्साह और श्रद्धा से काम किया। शोलापुर से आप
सत्याग्रहियों को हैदराबाद लाते थे और सत्याग्रह के समाचार हैदराबाद से बाहर भेजते
थे। 3 मार्च 1942 ई. के दिन होली में जुलूस के अवसर पर
मुसलमानों ने आक्रमण कर दिया, फलस्वरूप आप शहीद हो गए। आप के साथ
आपके साथी लक्ष्मण राव जी, राम जी अगडे़ और नरसिंह राव जी गोलियों
का निषाना बने थे।
12. राम कृष्ण जी
राम
कृष्ण जी का जन्म लावसी ग्राम में एक ब्राह्मण कुल में हुआ था और यह शहीद होने से
केवल दो सप्ताह पूर्व ही आर्य समाजी बने थे। एक दिन पठानों ने घोषणा की थी कि ‘उस
दिन वे मन्दिर को तोड़ेंगे, जिसे धर्म पर विश्वास हो वे आकर उन
मन्दिरों को उनके हाथों से बचा लें।’ सब हिन्दू घबरा कर अपने-अपने मकानों
में बैठ गये किन्तु जब राम ने यह घोषणा सुनी तो वे क्रोधाग्नि से जल उठे।
पुजारियों ने कभी इन्हें मन्दिर में प्रवेश होने नहीं दिया था और फिर आर्य समाजी
होने के कारण इन्हें मन्दिर और इन मन्दिरों की मूर्तियों से क्या रुचि, परन्तु
पठानों की इस घोषणा को इन्होंने सम्पूर्ण हिन्दू जाति के लिए एक चैलेंज समझा और
जाति की मान रक्षा हेतु मन्दिर द्वार पर
अपना डेरा डाला। यहाँ इन पर गोलियों की वर्षा हुई, घायल होने पर भी
आपने पठानों को मार भगाया और हिन्दू जाति की लाज रख ली। स्वयं शहीद होकर इन्होंने
मन्दिर की रक्षा की और जिस जाति में वे पैदा हुए थे, उसकी प्रतिष्टा रख
ली।
13. भीम राव जी
आप
हिपला उदगीरद्ध
के रहने वाले थे। इनके मित्र माणिक राव की बहन को मुसलमानों ने मुसलमान बना लिया
था। भीमराव ने उसे शुद्ध कर लिया था। इस कारण मुसलमानों ने क्रोधित होकर इनके घर
को आग लगा दी और इन्हें मार कर इनके हाथ-पांव काट डाले और इन्हें आग में जला दिया।
14. माणिक राव जी
यह
भी हिपला उदगीरद्ध के रहने वाले थे। इनकी बहन को मुसलमान बना लिया गया था। जब इनकी
बहन को शुद्ध कर लिया गया तो मुसलमानों ने माणिक राव जी को गोलियों का निशाना बना
दिया था।
15. सत्य नारायण जी
आप
अम्बोलगा ;वीदरद्ध के रहने वाले थे। आर्य समाज का काम बड़े जोष के साथ करते थे, इसीलिए मुसलमान
इनके शत्रु हो गए। मुहर्रम के दिनों में वे बाजार से जा रहे थे कि एक मुसलमान ने
पीछे से तलवार से हमला कर दिया। वे तुरन्त ही चिकित्सालय पहुंचाए गये पर वहां जाते
ही परलोक सिधार गये।
16. महादेव जी
यह
तिवाड़े के रहने वाले थे। गुलबर्गा में ही सत्याग्रह करने के कारण जेल में डाल दिए गये थे। जेल वालों के अत्याचार से 1939 ई.
में ही चल बसे।
17. अर्जुन सिंह जी
आप
आर्य समाज के एक नर-रत्न थे। आप तालुका कन्नड़ औरंगाबाद में पैदा हुए थे। बचपन से
ही आप हैदराबाद में रहने लगे थे। अपने उत्साह और निष्ठां के कारण आप हैदराबाद
दयानन्द मुक्ति दल के सेनापति बनाए गए थे। सम्वत् 1861 में जंगली
विठ्ठोबा की यात्रा में कुषल प्रबन्ध करने के बाद घर वापस लौट रहे थे कि मार्ग में
कुछ सशस्त्र मुसलमानों ने आप पर आक्रमण कर दिया, तुरन्त ही
उस्मानिया दवाखाना भेजे गए पर दूसरे ही दिन परलोक सिधार गये।
18. गोविन्द राव जी
आप
निलंगा जिला बीदर के रहने वाले थे। सत्याग्रह करके जेल गये। पर वहां के अत्याचारों
को सहन न कर सकने के कारण देहावसान कर गये।
19. गोन्दिराव जी,
लक्ष्मण
राव जी इन
दोनों ने सत्याग्रह में अपनी जान की बाजी लगा दी। आर्य
समाजी शहीदों का यह बहुत ही संक्षिप्त परिचय है। जिसका सहज ही अनुमान लगाया जा
सकता है कि हैदराबाद में वे निजाम सरकार और मुसलमानों के अत्याचारों का किस प्रकार
निषाना बने और वैदिक पताका को ऊॅंचा रखने के लिए किस प्रकार इन्होंने अपना अन्तिम
रक्त बिन्दु तक बहा दिया।
यदि
किसी आर्य महानुभाव के पास उपरोक्त क्रांतिकारियों की फोटो उपलब्ध हो तो वे उस
फोटो को दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा को उपलब्ध कराने की कष्पा करें। जिससे इन
क्रांतिकारियों की स्मष्ति में कार्यक्रम आयोजित कर इनको सच्ची श्रधान्जली अर्पित
की जा सके और लोगों को इनके विशय में सम्पूर्ण जानकारी हासिल कराई जा सके। फोटो ईमेल
कर सकते हैं| ..........(दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा) राजीव
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